Despite releasing the energy accumulated due to tectonic movements small tremors that are quite frequent really don’t reduce earthquake risk in an area because the energy released by these is insignificant. Uttarakhand Himalaya, located in Seismic Gap of 1905 Kangra and 1934 Bihar-Nepal earthquakes faces the risk of around 8.0 magnitude earthquake and to neutralise this risk or to release this energy by smaller magnitude earthquakes the region has to be jolted by 33 earthquakes of magnitude 7.0 or 1000 earthquakes of magnitude 6.0.
Smaller earthquakes though relatively frequent, are really not that frequent to actually reduce earthquake risk in an area.
संता – भाई, अभी परसो मैंने एक आपदा प्रबन्धन की कार्यशाना में भाग लिया था।
बंता – उच्च नया सीखा या फिर एक बार दोबारा से निल बट्टा सन्नाटा?
संता – ऐसा क्यों कह रहे हो? इस बार मैंने पूरा ध्यान दिया और नोट्स भी बनाये।
वहाँ बताया गया कि क्षेत्र में आने वाले भूकम्प के छोटे झटको से बड़े भूकम्प का खतरा कम हो रहा है।
बंता – मजाक कर रहे हैं क्या? तुमने जरूर सुनने में कुछ गलती की होगी।
संता – नहीं, बताया तो यही गया था। जरा देखो, लिखा भी यही हैं मैंने।
बंता – ऐसा कैसे बताया जा सकता हैं?
भूकम्प हैं, कोई प्रेशर कूकर थोड़े कि भाप निकलते रहने से फटने का खतरा कम हो जाये।
संता – मतलब?
बंता – कई बार यह गलती भूकम्प के पैमाने या स्केल को ठीक से न समझ पाने के कारण होती हैं।
संता – स्केल को ठीक से न समझ पाने का क्या मतलब हैं?
बंता – भाई असल में भूकम्प का पैमाना या रिक्टर स्केल लघुगुणकीय होता हैं।
संता – लघुगुणकीय?
अब ये क्या बला हैं?
बंता – मतलब कि यह हमारे द्वारा प्रायः उपयोग में लाये जाने वाले पैमानों से अलग हैं।
संता – कैसे?
बंता – दूरी का पैमाना कहे तो मीटर।
2 मीटर कहे तो 1 मीटर का दो गुना,
और 4 मीटर कहे तो 1 मीटर का चार गुना।
संता – अब तुम भी।
यह तो हर कोई जानता हैं।
बंता – वही तो परेशानी हैं।
संता – मतलब?
बंता – हमारी परिकल्पना का आधार हमारी जानकारी हैं।
अब हर कोई इसी प्रकार के, मीटर जैसे पैमाने को जानता हैं और इसीलिये हर कोई किसी नये पैमाने का हिसाब भी इसी तरह निकालता हैं।
हम मीटर को जानते समझते हैं कि उसका तात्पर्य क्या हैं और उसी के आधार पर वांछित दूरी का अनुमान लगते हैं।
संता – मतलब की भूकम्प का पैमाना या रिक्टर स्केल कुछ अलग हैं।
बंता – वही तो।
इसमें 1 जो हैं वो असल में log 10 हैं,
और जो 2 हैं वो log 100 हैं,
और 3 हैं log 1000।
सो सामान्य पैमानों के विपरीत इस पैमाने में 1 इकाई की बढ़त होने पर वास्तव में होने वाली बढ़त 10 गुना होती हैं।
संता – वैसे नापते क्या हैं इससे?
बंता – वैसे नापने को तो इस पैमाने से भूकम्प में उत्पन्न होने वाली तरंगो का आयाम ही हैं।
संता – मतलब कि परिमाण में 1 इकाई की वृद्धि होने पर तरंगो का आयाम 10 गुना बढ़ जाता हैं
या फिर ऐसे कि 6.0 परिमाण के भूकम्प में उत्पन्न तरंगो का आयाम 4.0 परिमाण के भूकम्प में उत्पन्न तरंगो के आयाम से 100 गुना ज्यादा होता हैं।
बंता – अब समझने लगे हो तुम।
वैसे ये तो थी तरंगो के आयाम की बात।
भूकम्प में अवमुक्त ऊर्जा की बात करे तो यह सम्बन्ध कहीं अधिक जटिल हैं।
संता – वो कैसे?
बंता – रिक्टर स्केल पर 1 इकाई की बढ़त होने पर भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा 31.6 गुना बढ़ जाती हैं।
संता – 31.6 गुना?
बंता – जी हाँ।
तभी तो 6.0 परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा 4.0 परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा से 1000 गुना अधिक होती हैं।
संता – इसका तो मतलब हुवा कि 6.0 परिमाण के भूकम्प का खतरा टालने के लिये हमें 4.0 परिमाण के 1000 भूकम्प चाहिये।
बंता – वहीं तो।
छोटे भूकम्प ज्यादा तो आते हैं पर इतने भी ज्यादा नहीं कि उनसे बड़े भूकम्प का खतरा कम हो जाये।
तभी तो कहता हूँ कि छोटे भूकम्पों के भरोसे न रहो, बस इन्हे प्रकृति द्वारा दी जा रही चेतावनी समझो, और समय रहते भूकम्प सुरक्षित निर्माण तकनीक अपनाओ, अपने घर को सुरक्षित बनाओ और अपनो की सुरक्षा सुनिश्चित करो।
इतना तो हक बनता है न उनका।
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