प्रयोजन जो भी रहा हो पर किम्मो शेरनी और बूढ़े भालू ने मिल कर उस दिन पुष्पावती के जंगल के लिये अत्यन्त ही प्रासंगिक विषय पर चर्चा के लिये जंगल के मांसाहारी जानवरो की बैठक तो बुला ही दी थी। उस बैठक में बूढ़े भालू के साथ-साथ रामदीन लकड़बग्गे ने जंगल की हालत और भविष्य में उत्पन्न हो सकने वाली स्थिति पर बातचीत करना भी शुरू कर ही दिया था।
अब वो अलग बात है कि वह बैठक बिल्लू शेर की दहाड़ की भेट चढ़ गयी और उसमे कोई भी सकारात्मक निर्णय नहीं हो पाया।
बैठक के बाद से पुष्पावती के जंगल पर निर्विवाद रूप से बिल्लू शेर का ही राज था, और उसकी दहाड़ अब भी पुष्पवती नदी के पार तक के इलाके में पहले की ही तरह सन्नाटा पसार देती थी। फिर किम्मो शेरनी के साथ उसका परिवार अब भी पहले की तरह पुष्पवती नदी के किनारे पहाड़ी पर अपनी ख़ानदानी माँद में आराम से गुजर-बसर कर ही रहा था।
एक बार फिर से माँद से नदी किनारे तक का क्षेत्र अन्य सभी जानवरो के लिये पूर्णतः प्रतिबन्धित था।
पर सच कहे तो पुष्पावती में सब कुछ पहले जैसा और सामान्य नहीं था।
वैसे कहते है न कि सम्बन्ध हो या व्यवस्थाये; उन्हें बनाने और सभी के द्वारा उनका अनुपालन सुनिश्चित करवाने में पीढ़िया गुजर जाती है, परन्तु बिगाड़ने पर उतारू हो जाओ तो इतने लम्बे समय की मेहनत से धरातल पर साकार की गयी व्यवस्थाओ को ख़त्म होते ज्यादा समय नहीं लगता।
ऐसे ही एक वाकये का पुष्पावती का जंगल भी गवाह बन रहा था।
हमारी जानकारी शेर खान के ज़माने तक ही सीमित है, अतः ठीक से बता नहीं सकते कि कब से पुष्पावती के सभी मांसाहारी जानवर बड़े ही व्यवस्थित तरीके से शिकार करते चले आ रहे थे। जहाँ एक ओर इस जंगल में प्रजनन काल में वयस्क मादाओं का शिकार प्रतिबन्धित था, तो वहीं दूसरी ओर बच्चो व गर्भवती मादाओं के शिकार की मनाही भी शेर खान के समय से ही थी।
पता नहीं कब से, पर नियमित अन्तराल पर यहाँ मांसाहारी व शाकाहारी जानवरो के द्वारा मिलजुल कर व्यवस्थित शिकार, तथा विशेष रूप से बच्चो व गर्भवती मादाओं के शिकार से जंगल के अस्तित्व पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को प्रचारित करने के लिये जागरूकता अभियान भी चलाये ही जा रहे थे और इसके उदाहरण तो आज भी दूर-दूर तक के जंगलो में दिये ही जाते है।
अभी हाल तक, विशेष रूप से प्रजनन काल से पहले यह जागरूकता अभियान घन्नू हाथी, बूढ़े भालू और लच्छू भैसे की अगुवाई में चलाया जाता था। इन सब की मेहनत का ही नतीजा है कि जंगल में हर कोई इन नियमो की अवहेलना के परिणामो से भली भांति परिचित है।
दंड और समाज का डर – इन्ही के कारण तो हर कोई जंगल के इन नियमो का कड़ाई से पालन करने के साथ-साथ यह कोशिश भी करता है कि रामदीन लकड़बग्गे व रातू तेंदुवे जैसे मौकापरस्त मांसाहारी भी इन नियमो की अवहेलना न कर पाये।
अब नियम कहो या पुष्पावती की परम्परा – यहाँ के सभी मांसाहारी जानवर अपना व अपने परिवार का पेट भरने के लिये केवल बूढ़े, घायल व कमजोर जानवरो को ही निशाना बनाते थे, और फिर इन सब को तो वैसे भी जल्दी ही मरना होता था। सो इनके शिकार से संतुलन बना रहता था और मांसाहारी जानवरो के लिये भोजन की व्यवस्था भी हो जाती थी।
पर पिछले समय में दो-चार दिन के लिये अपनी धूर्तता से राजा बने भूरा सियार को पुष्पावती के बुरे-भले से ज्यादा कुछ लेना-देना तो था नहीं। उसे तो बस आराम से दिन कटाने थे – पुष्पावती में नहीं तो पुष्पवती के पार – फिर उसे इस जंगल से ऐसा कोई विशेष लगाव भी तो नहीं था।
भूरा सियार और उसके परिवार को तो छोटे बच्चो का नर्म मांस ही ज्यादा पसन्द था। सो जंगल के सदियों पीढियों से चले आ रहे नियमो के विपरीत उसका जोर विशेष रूप से इन्ही के शिकार पर रहता था।
जब राजा ही नियम तोड़ने को प्रोत्साहित कर रहा हो, तो कौन सा नियम टूटेगा और कौन सा नहीं इसका तो बस कयास ही लगाया जा सकता है। सो पुष्पावत में छोटे बच्चो के साथ ही अपेक्षाकृत कम मेहनत से पकड़ में आ जाने वाली गर्भवती मादाओं का शिकार भी धड़ल्ले से होने लगा।
छोटे बच्चो तथा गर्भवती व प्रजनन योग्य मादाओं के अनियन्त्रित शिकार के परिणाम भी जल्द ही सबके सामने आने गये।
अब इस सबसे घन्नू हाथी और लच्छू भैसे जैसे बड़े शाकाहारी जानवरो को तो कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था, पर इससे नियमित रूप से मांसाहारी जानवरो का भोजन बनने वाले छोटे जानवरो की संख्या में तेजी से गिरावट जरूर आने लगी जिसके फलस्वरूप मांसाहारी जानवरो को खाने के लाले पड़ने शुरू हो गये।
वो दिन सच में फुर्र हो गये जब भूख लगते ही बिल्लू शेर को बिना ज्यादा मेहनत के झट से गर्म ताजा गोश्त मिल जाता था और अपना व परिवार का पेट भरने के बाद वह शिकार का एक बड़ा हिस्सा अन्य जानवरो के लिये छोड़ देता था।
अब बदले हुवे हालात में खुद बिल्लू शेर के परिवार को कई दिनों के बाद खाना नसीब हो पा रहा था। सो ऐसे में उससे अन्य जानवरो के बारे में सोचने की उम्मीद करना सच में बेवकूफी था। अब तो शिकार करने के बाद बिल्लू शेर जानवर को घसीट कर अपनी माँद तक ले आने के बाद ही खाना शुरू करता, और बच गये मांस को ध्यान से सुरक्षित जगह पर छिपा देता ताकि दोबारा भूख लगने पर ज्यादा जद्दोजहद न करनी पड़े।
ऐसे में समय बीतने के साथ बिल्लू शेर की जूठन पर पलने वाले जानवरो के अस्तित्व पर संकट के बदल गहराने लगे।
पुष्पावत के बदले हुवे हालात में वहाँ रह रहा कोई भी मांसाहारी जानवर किनारे बैठ कर तमाशा देखने की स्थिति में नहीं था। पर्याप्त खाना न मिल पाने के कारण परिवार की मादाये छोटे बच्चो को दूध नहीं पिला पा रही थी, और मांस पर निर्भर बच्चे भुखमरी की मार झेल रहे थे। ऐसे में सभी जानवरो को पूरी की पूरी नस्ल का अन्त होता साफ दिखायी देने लगा था।
परिस्थितियों ने पुष्पवती नदी के किनारे के घास मैदानो में घात लगा कर शिकार करने में माहिर तथा नखरीली व शातिर रूपा बाघिन के साथ ही रात के सन्नाटे में दबे पाँव पेड़ो के ऊपर से शिकार करने वाले रातू तेंदुवे को आपस में सलाह कर के परिवार सहित पुष्पवती पार के जंगल में चले जाने की योजना बनाने के लिये विवश कर दिया था। उसके बाद से ये दोनों मिल कर दिन-रात पुष्पवती में ऐसी जगह ढूंढ़ने में लगे रहते थे जहाँ से बच्चो के साथ सुरक्षित नदी को पार किया जा सके।
पर नदी पार का जंगल भी तो मांसाहारी जानवरो से भरा पड़ा था और इनके वहाँ जाने से शिकार के लिये प्रतिस्पर्धा व आपसी संघर्ष का बढ़ना तय था। ऐसे में यह दोनों भी नदी पार के जंगल में अपने परिवार की सुरक्षा के प्रति भी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे।
अपने रूप और नाक-नक्श की ताकत से पूरी तरह वाफिक व पहले कई बार इनके दम पर अपना काम निकलवा चुकी रूपा बाघिन को इतना तो विश्वास था कि वह पुष्पवती पार के जंगल में चल रहे नस्ल सुधार कार्यक्रम का आसानी से हिस्सा बन जायेगी, पर उसे शक था कि इसके बावजूद भी वहाँ कि बाघ उसके बाकी के परिवार को शायद ही अपनायें।
ऐसे में पुष्पावती छोड़ कर जाने का निर्णय भी सुरक्षा की पूरी गारंटी नहीं था। अतः पूरे आत्मविश्वास के साथ कोई निर्णय ले पाना न शातिर रूपा बाघिन के लिये सरल था और न ही रातू तेंदुवे के लिये। ऐसे में बिना किसी जल्दबाजी के वो दोनों बस स्थितियो पर नजर बनाये, समय कि अपने अनुकूल होने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
अब यह तो सच है कि मुसीबत के समय कट्टर प्रतिद्वन्दी भी सहयोगी बन जाते है। सो रामदीन लकड़बग्गे की पहल और बूढ़े भालू की मध्यस्तता से एक बार फिर से जंगल में व्यवस्था बनाने और पुष्पावती के अस्तित्व को बचाने की मुहिम शुरू की गयी।
वैसे समस्या अकेले मांसाहारी जानवरो की नहीं थी, पर आसानी से प्रायः साथ वही आते है जिन तक सीधी आंच पहुंच रही हो। सो धीरे-धीरे सभी मांसाहारी जानवर आपस के राग-द्वेष भुला कर बिल्लू शेर की अगुवाई में बैठक के लिये राजी हो ही गये।
इस बैठक की जगह व उपस्थिति तो पहले की ही तरह थी, पर इस बार वहाँ जमा हुवे जानवरो में पहले वाला जोश नदारत था। हर कोई साफ-साफ भूखा व थका नजर आ रहा था और सभी के मुँह लटके हुवे थे। वापसी के बाद यह बिल्लू शेर की पहली बैठक थी – सो वह भी वहाँ जमा हुवे जानवरो के मनोभावों को पढ़ने-समझने में व्यस्त था।
वैसे तो समस्या से सभी भली भांति परिचित थे, पर जैसा ऐसी बैठकों में अक्सर होता है सबसे पहले बूढ़े भालू ने औपचारिकतायें पूरी की – बिल्लू शेर का स्वागत और समस्या से जुड़े बिन्दुओ की व्याख्या।
वैसे पता सभी को था की समस्या अकेले मांसाहारी जानवरो की नहीं है, पर जब पेट खाली हो तो शिकार पर प्रतिबन्ध और संयम की बात सुनता भी तो कौन ?
ज्यादातर परिस्थितियों में ऐसी औपचारिक बैठकों में लिये जाने वाले निर्णयो कि बारे में सभी को पहले से पता होता है और किया जाने वाला विचार-विमर्श महज नाटक ही होता है। ऐसा ही कुछ इस बैठक में भी हुवा। सभी को मालूम था की इन परिस्थितियों में मिल-जुल कर शिकार करना ही अकेला उपलब्ध विकल्प है और बैठक में फैसला भी यही लिया गया।
पर ऐसा भी नहीं है कि बैठक में विचार-विमर्श हुवा ही नहीं।
“इन दिनों शिकार के लिये जानवर भी तो नहीं रह गये है।”
“हर तरफ बस भैसे ही चरते नजर आते है।”
“अब हिरन भी तो काफी सेहतमंद और तेज तर्रार ही बचे है और उन्हें पकड़ पाना सरल नहीं है”, कल्लू चीता ने कहा।
“अब कल की ही तो बात है, मैंने दो बार पूरी जान लगा कर पीछा किया पर वो दोनों ही बार बच निकले।”
“फिर एक-आध हिरन से हम सब का ज्यादा कुछ भला होने से रहा”, रूपा बाघिन ने कहा।
“सभी का पेट भरना है तो शिकार भी किसी बड़े भैसे का ही करना पड़ेगा।”
“उसी से हम सबका दो-चार दिनो का गुजरा हो सकता है।”
“पर भैसो के झुण्ड पर हाथ डालने का मतलब है लच्छू भैसे से दुश्मनी, और उसमे बहुत खतरा है”, बिल्लू शेर ने उपस्थित जानवरो को चेताते हुवे कहा।
“अब लच्छू भैसे की दुश्मनी की चिन्ता करनी है या खुद के जिन्दा रहने की ?”, भड़कते हुवे रातू तेंदुआ ने बिल्लू शेर कि ओर देख कर कहा। मानो वो बिल्लू शेर के अस्तित्व को चुनौती दे रहा हो।
“फिर हम सब एकजुट हो जाये तो चिन्ता की कोई बात ही नहीं है”, रूपा बाघिन ने जोश के साथ कहा और उसके बाद किसी भी के लिये आगे कुछ कहने को नहीं रह गया था। फिर “एकता में शक्ति” वाली पंचतंत्र की कहानी तो जंगल के जानवरो ने भी सुन ही रखी थी।
लम्बी बहस के बाद फैसला हो गया कि मिल जुल कर झुण्ड से अलग-थलग पड़ गये किसी वयस्क भैसे को निशाना बनाया जायेगा। इसके बाद सभी शिकार की रणनीति बनाने में व्यस्त हो गये।
“रूपा बाघिन झाड़ियों में घात लगायेगी और रातू तेंदुआ पेड़ो के ऊपर मुस्तैद रहेगा।”
“बिल्लू शेर सामने से हमला कर के शिकार को नीचे गिरायेगा और उसके बाद रामदीन लकड़बग्गा उसे हिलने नहीं देगा।”
“अगर शिकार भागता है तो कल्लू चीता उसका पीछा करेगा।”
“और बूढ़ा भालू शिकार को बिल्लू शेर की ओर खदेड़ेगा।”
साँझ का धुंधलका होने तक सभी योजना के अनुसार अपनी नियत जगह पर मुस्तैद हो गये। हल्का सा अंधेरा होने पर जैसे ही भैसो का झुण्ड नदी किनारे के घास के मैदान से जंगल की ओर जाने लगा बूढ़े भालू ने पीछे छूट गये एक वयस्क भैसे पर अपनी नजर गड़ा दी।
हाँ, नंदू भैसा; पहचानने के बाद उसकी पारखी आँखे उसके वजन का अन्दाज लगाने लगी।
“कोई 12 – 13 सौ किलो होना चाहिये, यही ठीक रहेगा।”
फिर धीरे-धीरे बूढ़े भालू ने नंदू भैसे को भटकाना शुरू कर दिया और वह उनकी योजना के अनुसार उसी ओर जाने लगा जहाँ बिल्लू शेर उसका इन्तजार कर रहा था।
नंदू भैसे के नजदीक आते ही बिल्लू शेर ने बिना कोई गलती किये तेजी से छलांग लगायी पलक झपकते ही वह उसकी पीठ पर सवार हो गया और उसने अपने पैने दाँत नंदू भैसे की गर्दन पर गड़ा दिये।
अचानक हुवे इस हमले से हतप्रभ नंदू भैसे को पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया, पर गर्दन पर तेजी से बढ़ रहे दबाव से उत्पन्न दर्द का एहसास होते ही उसने अपनी पूरी ताकत के साथ मदद के लिये चिल्लाना शुरू कर दिया।
नंदू भैसे की दर्द भरी चीत्कार सुन कर जंगल की ओर बढ़ता भैसो का झुण्ड एकदम से ठिठक कर रह गया। खतरे का एहसास होते ही झुण्ड अपने आप बाहर की ओर मुँह करके गोल घेरे में फैलता चला गया – बच्चे घेरे के बीच में और किसी भी खतरे का सामना करने के लिए वयस्क बाहर की ओर। हमलावरों से बचाव के लिये नियमित रूप से किये जाने वाला अभ्यास आज उनके काम आ रहा था।
लच्छू भैसे को माजरा समझते ज्यादा देर नहीं लगी और हमलावर के बारे में बिना कुछ सोचे वह आवाज की दिशा दौड़ पड़ा। खतरे का सामना और सहायता करने के लिये झुण्ड के दो और वयस्क भैसे पीछे हो लिये।
अब तक बिल्लू शेर ने नंदू भैसे को जमीन पर गिरा दिया था और उसके सीने पर पंजे गड़ा कर जबड़ो से साँस की नली को मजबूती से दबोच लिया था।
योजना के अनुसार अब आगे की जिम्मेदारी रूपा बाघिन, रामदीन लकड़बग्गे व रातू तेंदुवे की थी।
पर ये क्या ?
ये तीनो तो अपनी जगह से हिले तक नहीं और लच्छू भैसा घटनास्थल तक जा पहुँचा था।
माजरा देखते ही बूढ़े भालू को समझते देर नहीं लगी कि इन तीनो शातिरों ने मिल कर बिल्लू शेर को फँसा दिया है।
वैसे तो बिल्लू शेर के पंजो और तेज दाँतो ने अपना काम कर ही दिया था और जमीन पर पड़े नंदू भैसे में कुछ ही साँसे बाकी थी।
नंदू भैसे पर नजर पड़ते ही लच्छू भैसा समझ गया कि अब उसका बचना मुश्किल है। पर आगे के लिये इन सब को सबक तो सिखाना ही था। सो उसने आव देखा न ताव, फुफकारते हुवे बिल्लू शेर पर हमला बोल दिया।
बिल्लू शेर के दाँत अभी तक नंदू भैसे की गर्दन को ही जकड़े थे और उसे इस हमले की जरा सी भी उम्मीद नहीं थी। सो लच्छू भैसे के मजबूत सिर की दमदार टक्कर को वो सम्भाल नहीं पाया। लच्छू भैसे के वार ने उसे हवा में उछाल कर दूर झाड़ियों में फेंक दिया था। अब तक लच्छू भैसे की सहायता के लिये आ रहे दोनों वयस्क भैसे भी वहाँ पहुँच गये थे और अब पाँसा पलट चुका था और शिकारी खुद शिकार बनता नज़र आ रहा था।
वो तो भला हो किम्मो शेरनी का जिसने लच्छू भैसे को हमले का दूसरा मौका नहीं दिया और समय रहते स्तिथि की गम्भीरता को भाँपते हुवे अपनी जान जोखिम में डाल कर वह भैसो व बिल्लू शेर के बीच आ गयी। वरना उस दिन बिल्लू शेर का उन तीन शातिरों ने राम नाम सत्य करवा ही दिया था। नंदू भैसा ख़त्म हो ही गया था और इन दोनों से उलझने में कोई समझदारी थी नहीं। सो लच्छू भैसा एक दो बार फुफकार कर बिल्लू की ओर बढ़ने के बाद वापस जंगल की ओर निकल लिया। दोनों वयस्क भैसे भी उसके पीछे हो लिये।
पता नहीं बिल्लू शेर को ज्यादा चोट लच्छू भैसे की दमदार टक्कर से लगी थी या फिर रूपा बाघिन, रामदीन लकड़बग्गे व रातू तेंदुवे के धोखे से; अब उसे जमीन पर मरे पड़े नंदू भैसे में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रह गयी थी और उसने माँद का रुख कर लिया था। शायद इस सब से वह काफी आहत हो गया था और कुछ समय एकांत में व्यतीत करना चाह रहा था।
समय बीतने के साथ रात गहराती जा रही थी और किम्मो शेरनी जानती थी कि शिकार को लावारिस नहीं छोड़ा जा सकता था। फिर उसे परिवार के बारे में भी तो सोचना था। अतः बिना समय गवाये किम्मो शेरनी ने नंदू भैसे को माँद की ओर खींचना शुरू कर दिया।
बिल्लू शेर भी समझ गया कि इसी में सभी की भलाई है और फिर वो दोनों मिल कर नंदू भैसे को माँद तक ले ही आये।
पर ये क्या ?
शिकार में धोखे के बाद आज रामदीन लकड़बग्गे ने बिल्लू शेर की माँद की भी अवहेलना करने की जुर्रत कर दी थी।
अपने पूरे झुंड के साथ शिकार पर कब्ज़ा करने की नीयत से उसने बिल्लू शेर की माँद पर धावा बोल दिया था। लकड़बग्गो का पूरा का पूरा झुंड भैसे के शरीर पर टूट पड़ा था और उनके मजबूत जबड़ो से पार पा सकना जंगल में किसी के लिये भी सरल नहीं था।
फिर बिल्लू भी थका व चोट खाया था और साथ ही माँद में किसी भी तरह का फसाद उसके परिवार की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता था। अतः बिल्लू शेर ने किम्मो शेरनी के साथ पीछे हटने का फैसला लेने में ज्यादा समय नहीं गंवाया।
इसके बाद पता नहीं कब रामदीन लकड़बग्गे का झुंड नंदू भैसे के शरीर के साथ जंगल के अंधेरे में गुम हो गया।
अब बिल्लू शेर से छीने इस शिकार में से रूपा बाघिन या रातू तेंदुवे को हिस्सा मिला, नहीं मिला, या कितना मिला? सच में यह सब कोई नहीं जानता पर रामदीन लकड़बग्गे की नीयत को जानने वाले कहते है कि अपने छीने शिकार में से उसने कभी, किसी को भी, कोई हिस्सा नहीं दिया था।
उस रात के अंधेरे में शिकारियों के द्वारा अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में बनायीं गयी योजना के अनुसार किये गये शिकार के नाम पर जो कुछ किया, उससे विशेष रूप से मांसाहारी जानवरो के बीच का सारा विश्वास और तालमेल एक पल में ख़त्म हो गया।
अब जंगल में सच में जंगलराज था – जिसे भी जब, जहाँ, जैसे और जिसका शिकार करने का मौका मिलता, वह पीछे नहीं हटता। क्या बच्चे, क्या गर्भवती और मादा – इस संहार से कोई भी सुरक्षित नहीं था। सच मानिये ऐसा संहार और अराजकता कभी पहले किसी और जंगल ने नहीं देखी थी। अब इसे आप पुष्पावती का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहेंगे?
वैसे तो उन दोनों के भोजन पर जंगल की इस उठा-पटक का ज्यादा फर्क नहीं पड़ा था; बूढ़े भालू के लिये शहद और कंद-मूल की जंगल में कोई कमी थी नहीं और न ही घन्नू हाथी के लिये चारा- पत्ती की। पर पुष्पावती के जंगल की खुशहाली व समृद्धि के लिये समर्पित और पिछले दो दशकों से जंगल में शिकार के कायदे-कानून बनाने और उनके स्वैच्छिक अनुपालन के लिये काम करने के कारण बूढ़ा भालू और घन्नू हाथी जंगल के वर्तमान घटनाक्रम से सबसे ज्यादा आहत थे।
फिर अपनी दूरदर्शी व विचारक प्रवृत्ति के कारण वह निकट भविष्य में होने वाले सम्पूर्ण विनाश की पटकथा को सहज ही पढ़ पा रहे थे। बुद्धिजीवी प्रवत्ति के ये लोग जानते थे कि आज प्रत्यक्ष संकट न होने पर भी इन स्थितियों में कल उनका व उनके परिवारों का भी विनाश होना तय है।
पुष्पावती के भविष्य में अपना भला खोजने व जंगल के सभी जानवरो के हित में अपना व अपने परिवार का सुख देखने वाले बूढ़े भालू और घन्नू हाथी के लिये आने वाला समय बेहद चुनौतीपूर्ण होने वाला था और फिर समय भी तो उनके धीरज और सूझ-बूझ की परीक्षा लेने को तैयार खड़ा था।
वैसे कहने को तो घन्नू हाथी शाकाहारी था, पर उसकी धमक से बिल्लू शेर सहित जंगल के सभी जानवर डरते थे। सब को मालूम जो था कि अगर अपनी पर आ जाये तो ऐसा कुछ भी नहीं जो वो न कर पाये। फिर उसका कुछ भी बिगाड़ पाना जंगल के किसी जानवर के बस का भी तो नहीं था।
ऐसे में आगे का पूरा दारोमदार घन्नू हाथी के सिर पर ही था। मगर उसे अच्छे से मालूम था कि बूढ़े भालू के अनुभव और सूझबूझ के बिना केवल ताकत से कुछ हासिल होने वाला नहीं था। सो उसने बूढ़े भालू को पुष्पावती सहित पास-पड़ोस के जंगलो के शिकार के नियम-कायदो को जाँच-परख कर पुष्पावती के वर्तमान परिदृश्य के लिये उपयोगी नियमो की सूची बनाने के साथ ही कुछ भी कर के जंगल के सभी जानवरो को एकजुट करने के काम में लगा दिया।
बूढ़े भालू ने अपनी बातचीत का सिलसिला तो निश्चित ही बिल्लू शेर से शुरू किया, पर वह टिंकू हिरन व पप्पू खरगोश के साथ ही रूपा बाघिन, रामदीन लकड़बग्गे व रातू तेंदुवे के भी संपर्क में था।
जहाँ एक ओर उसने अपनी सूझबूझ से पुष्पावती के भले व शेर खान के नाम की दुहाई दे कर बिल्लू शेर को बड़प्पन दिखाते हुवे उसके साथ हुवे धोखे को भूल कर सभी को माफ करने और आगे बढ़ने के लिये मना लिया था तो वही दूसरी ओर लोकलाज व सामाजिक बहिष्कार का डर दिखा कर उसने बड़ी चालाकी से रूपा बाघिन, रामदीन लकड़बग्गे व रातू तेंदुवे को बिल्लू शेर से माफ़ी मांगने के लिये भी तैयार कर लिया था।
बूढ़े भालू को पता था कि शिकार के नियमो का पालन बिल्लू शेर कि रजामंदी के बिना नामुमकिन होगा। अतः उसने बिल्लू शेर को विश्वास में लेने के बाद उस पर घन्नू हाथी का दबाव बनाया और उसके साथ अपने द्वारा घन्नू हाथी के निर्देशों के अनुसार सूचीबद्ध किये गये व पुष्पावती के लिये प्रासंगिक नियमो पर गहन चर्चा भी कर ली। कुछ नियमो को ले कर बिल्लू शेर को कुछ शंकाये थी जिन्हे उसने सहज ही दूर कर दिया और कुछ नियमो में उसके बताये अनुसार संशोधन कर दिया। इस प्रकार बूढ़े भालू ने चालाकी से बैठक से पहले ही प्रस्तावित नियमो पर बिल्लू शेर का पूरा समर्थन प्राप्त कर लिया था।
शायद इसी को राजनैतिक चातुर्य कहते है।
आगे की सबसे बड़ी समस्या लच्छू भैसे की हठधर्मिता से जुड़ी थी और वो अपने भतीजे नंदू भैसे की मौत को भुलाने के लिये तैयार नहीं था। फिर जैसा उसने स्वयं देखा था इस पूरे घटनाक्रम के लिये वह बिल्लू शेर को ही उत्तरदायी मान रहा था। ऐसे में वह बिल्लू शेर को किसी भी प्रकार का सहयोग करने को तैयार नहीं था।
अब समझदारी और अनुभव का फायदा ऐसी ही परिस्थितियों में तो मिलता है।
एक तो लच्छू भैसा घन्नू हाथी की किसी भी तरह से अनदेखी करने की स्थिति में नहीं था – शाकाहारी जानवरो में सबसे शक्तिशाली व बुद्धिमान था वो।
फिर जब खुद घन्नू हाथी ने साथ बैठ कर उसे मांसाहारी जानवरो की भूख से उपजी विवशता, उनकी योजना के साथ ही बिल्लू शेर के साथ हुवे धोखे के बारे में विस्तार से बताया तो बिल्लू शेर से उसकी दुश्मनी कुछ कमजोर जरूर हो गयी पर एकदम से हथियार डालने को तो वो भी तैयार नहीं था। पर जब घन्नू हाथी ने उसको वर्तमान स्थितियों से उपजे पुष्पावती के जंगल के भविष्य का परिदृश्य दिखाया तो उसके सामने मान जाने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प बचा ही नहीं था। आखिर पुष्पावती का जंगल ही तो उसका घर था, और फिर दिखता चाहे जैसा भी हो पर वो अपनी दुश्मनी के लिये अपने घर को बर्बाद करने जितना भी बेवक़ूफ़ नहीं था।
पुष्पावती के सारे के सारे जानवर अब एकमत थे पर शाकाहारी जानवर अब भी बिल्लू शेर की अध्यक्षता में आहूत बैठक में प्रतिभाग करने के लिये एकमत नहीं थे। सो बूढ़े भालू के सुझाव पर पुष्पावती के हित को ध्यान में रखते हुवे इस बैठक को घन्नू हाथी की अध्यक्षता में बुलाने का निर्णय लिया गया।
जैसा कि स्वाभाविक है, बिल्लू शेर इस निर्णय से आहत था और उसने बैठक में प्रतिभाग न करने का भी मन बना लिया था। उसे लगा जो था कि यह बैठक उसके राजा होने पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है।
वो तो भला हो किम्मो शेरनी की सूझबूझ का जिसने समय रहते बिल्लू शेर को पुष्पावती के भविष्य और उसके पूर्वजो की धरोहर का वास्ता दे कर मना ही लिया।
सो बैठक का दिन भी आ ही पहुँचा।
पुष्पावती के इतिहास की पहली बैठक थी यह जिसमें हिरन व खरगोश अपने प्रतिद्वंदी शेर, बाघ, चीता व लकड़बग्गे के सामने थे, और बैठक की अध्यक्षता बिल्लू शेर की जगह घन्नू हाथी कर रहा था। साथ ही मंच की दाहिनी ओर बैठा बिल्लू शेर विगत के घटनाक्रम को भूल रूपा बाघिन व रातू तेंदुवे के साथ भविष्य की रणनीति पर चर्चा करने में व्यस्त था तो बायीं ओर बैठे शाकाहारी जानवर घन्नू हाथी से उनके हितो की रक्षा की सम्भावनाये टटोल रहे थे।
नियत समय पर घन्नू हाथी के आगमन के साथ बैठक शुरू हो गयी। पर यह बैठक बूढ़े भालू के औपचारिक सम्बोधन और फिर बैठक के विषय से सब परिचित भी थे ही। शायद इसीलिये अन्य बैठको की तरह इस बार किसी ने भी पृष्टभूमि व चर्चा किये जाने वाले बिन्दुओ के बारे में कोई बात नहीं की थी।
सामान्यतः होने वाली बैठकों के विपरीत इस बैठक में सभी प्रस्ताव घन्नू हाथी के द्वारा ही रखे गये और स्थापित लोकतान्त्रिक व्यवस्था के विपरीत इस बैठक में विचार-विमर्श या चर्चा के स्थान पर केवल विरोध करने वाले जानवरो को अपनी बात कहने की छूट दी गयी थी।
अब इसे आप कुछ भी कह सकते है – घन्नू हाथी का प्रभाव या बूढ़े भालू द्वारा की गयी मेहनत या फिर लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओ का हनन।
कारण जो भी रहा हो पर इस बैठक में घन्नू हाथी के ज्यादातर प्रस्ताव निर्विरोध ही पारित हो गये।
अतः इस बैठक के बाद वर्तमान में पुष्पावती में स्थापित व्यवस्था का सारांश निम्नवत है:
- पुष्पावती के सभी जानवर मानते है कि भूख मिटाने के अनियंत्रित, असंतुलित, अमर्यादित व असंयमित तरीके पूरे जंगल के भविष्य को संकट में डाल सकते है
- मरना-मारना निश्चित ही अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये सभी जानवरो के लिये जरूरी है पर इस प्रवृत्ति को केवल जीवित रह सकने कि जद्दोजहद तक सीमित किया जाना सभी के लिये जरूरी है।
- मांसाहारी जानवर भोजन के लिये शिकार करने के लिये स्वतंत्र है, परन्तु वह शिकार के लिये किसी भी प्रकार का षड़यंत्र या अनैतिक गठजोड़ नहीं करेंगे।
- प्रजनन काल में जंगल में प्रजनन योग्य मादाओं का शिकार पूर्णतः प्रतिबन्धित होगा।
- गर्भवती मादाओं का शिकार किसी भी स्थिति में नहीं किया जायेगा और यह अक्षम्य अपराध होगा।
- अपनी रक्षा में अक्षम अबोध बच्चो का शिकार भी गर्भवती मादाओं के शिकार की ही तरह एक अक्षम्य अपराध होगा।
- उपरोक्त सभी नियमो के महत्व से पूरे जंगल के जानवरो को परिचित करवाने और इन सभी का स्वैछिक अनुपालन सुनिश्चित करवाने के लिये जंगल में नियमित रूप से मनोरंजक व प्रेरणादायक जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा। बिल्लू शेर का इन कार्यक्रमों के आयोजन, विषय-वस्तु या वित्त पोषण पर कोई या किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं होगा।
- इन नियमो का अनुपालन सुनिश्चित करने, इनसे जुड़ी शिकायतों को प्राप्त करने, उनकी जाँच कर दोषी जानवर को सजा देने के लिये बूढ़े भालू की अध्यक्ष्यता में एक पृथक प्रभाग की स्थापना की जायेगी और इस प्रभाग से जुड़ी शिकायतों पर घन्नू हाथी का निर्णय अन्तिम व सभी को स्वीकार्य होगा। यह प्रभाग बिल्लू शेर के प्रभाव से पूर्णतः मुक्त होगा।
इसके बाद से पुष्पावती के जंगल में स्थितिया सामान्य तो होने लगी है परन्तु जानवरो के बीच की अविश्वास की खाई अभी पटी नहीं है। सो पुष्पावती का भविष्य अभी भी संकटो से मुक्त नहीं है। अब देखते है कि बूढ़ा भालू और घन्नू हाथी जंगल की सुरक्षा की लिये क्या करते है।
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यहाँ आप सब कहानी पढ़ने वालो से अपेक्षा आपके घन्नू हाथी बनने या फिर अपना घन्नू हाथी ढूंढ़ने भर से है।
वैसे यू ही कहानी कहने या पढ़ने / सुनने का कोई मकसद नहीं रह जाता जब तक उससे कुछ सबक न लिया जाये।
इसलिये पढ़ने वालो के लिये एक प्रतियोगिता है और यहाँ आपको जवाब बस इतना देना है कि “आपको यह कहानी कैसी लगी और इस कहानी से आपको क्या सबक मिलता है?”
आपके इन उत्तरो की लिये हमारे पास तीन बड़े इनाम है जिनका खुलासा हम होली की बाद करेंगे।
तब तक सांसे रोके रखिये, और बताइये कि बिल्लू, रूपा, रामदीन, घन्नू, रातू, या कभी-कभार नजर आने वाली किम्मो के चरित्र से आप क्या सीखते है ?
Anonymous says
अति सुन्दर. इस कहानी को आगे जरूर बढ़ाये.
Excellent narration in simple but powerful manner. Keep it up.