पुष्पावती का जंगल उस समय भी आज की ही तरह मानव हस्तक्षेप से पूरी तरह अछूता था।
वहाँ की वन सम्पदा का दोहन करने को तो हर कोई आतुर था पर यह सब उतना सरल भी नहीं था।
एक तो पुष्पावती का जंगल बहुत ही घना था और फिर वहाँ तरह – तरह के खूंखार जंगली जानवर भी रहते थे। साथ ही यह जंगल तीन तरफ से पुष्पवती नदी से घिरा था और तीव्र पहाड़ी ढाल से बह कर आने वाली इस नदी का प्रवाह बहुत ही उग्र था और साथ ही गहराई भी काफी अधिक थी।
अतः पुष्पावती का जंगल एक अभेद्य दुर्ग से किसी भी तरह कम नहीं था।
अब कहने को तो पुष्पावती में अनेको मांसाहारी जानवर रहते थे, पर सच कहो तो जंगल का राजा निर्विवाद रूप से बिल्लू शेर ही था।
राजा और नाम बिल्लू!
हमारी तरह आपको भी यह नाम निश्चित ही काफी अटपटा लगा होगा? राजा का नाम तो रौबदार होना चाहिये। जंगल में कोई नहीं जानता कि यह उसका असली नाम था, या फिर प्यार का सम्बोधन। कुछ बड़े – बूढ़ो का कहना था कि बचपन में वह खरगोश के बच्चे पकड़ने के लिये उनके बिल खोदने में लगा रहता था और उसका यह नाम बचपन की उसी आदत से जुड़ा हैं।
खैर सच जो भी हो, बिल्लू को अपने इस नाम से कोई परेशानी नहीं थी।
बिल्लू पुष्पवती नदी से कुछ ही दूरी पर स्थित एक पहाड़ी पर अपनी ख़ानदानी माँद में अपने परिवार के साथ रहता था और माँद से नदी किनारे तक का क्षेत्र अन्य जानवरो के लिये निषिद्ध था।
बिल्लू शेर की दहाड़ में गजब का भारीपन था और उससे उत्पन्न होने वाले कम्पनों को पुष्पावती के जंगल के अलावा पुष्पवती पार दूर- दूर तक महसूस किया जा सकता था। बिल्लू की एक दहाड़ से इस पूरे इलाके में मरघट का सा सन्नाटा पसर जाता था और जानवरो का कहना था कि बिल्लू शेर के पढ़दादा शेर खान के बाद से उन्होंने ऐसी दमदार दहाड़ नहीं सुनी थी।
अब ऐसा भी नहीं था कि बिल्लू शेर की सिर्फ दहाड़ ही दमदार थी।
अब शेर था वो, और निश्चित ही उसमे अन्य जानवरो से कहीं ज्यादा ताकत थी। फिर उसमें फुर्ती व चुस्ती भी गजब की थी जिसके कारण वह शिकार करने में कभी भी नाकाम नहीं होता था। यही कारण था कि जहाँ एक ओर अन्य मांसाहारी जानवर कई-कई दिन तक शिकार नहीं कर पाते थे बिल्लू शेर के परिवार को भूख लगते ही गर्म ताजा गोश्त सहज ही मिल जाता था।
शायद बिल्लू शेर भी अच्छे से जानता था कि नियमित रूप से शिकार न कर पाने के कारण जंगल के कई मांसाहारी जानवरो के परिवारों को भूखा रहना पड़ता है। फिर जंगल का राजा होने के कारण उसे अपनी जिम्मेदारी का भी तो अच्छे से एहसास था।
शायद यही कारण था कि शिकार करने के बाद वह हमेशा ही काफी बड़ा हिस्सा साबुत ही छोड़ देता था और परिवार सहित चुपचाप दूर चला जाता था ताकि जंगल के बाकी मांसाहारी जानवरो का पेट भर सके। और कभी कभार तो ऐसा लगता था कि उसने दूसरे जानवरो के लिये ही शिकार किया हो।
यहीं सब था जो बिल्लू शेर को बिल्लू शेर बनाता था और इसी के कारण जंगल के सारे जानवर उसकी व उसके परिवार कि काफी इज्जत करते थे।
पर इतने सब के बाद भी सभी का हमेशा तो पेट भर नहीं पाता था। बिल्लू शेर के चले जाने के बाद की छीना-झपटी में ताकतवर जानवरो को तो कुछ न कुछ मिल जाता था पर बेचारे भूरा सियार के हिस्से हमेशा ही चुसी हुयी हड्डियाँ ही आती थी। ऐसे में उस बेचारे को परिवार का पेट भरने में काफी मशक्कत करनी पड़ती थी।
इस हालत में भूरा सियार हमेशा ही बिल्लू शेर से दोस्ती करने की जुगत में लगा रहता था। पर बिल्लू शेर को भला कमजोर सियार की दोस्ती में क्यों दिलचस्पी होती ?
फिर एक दिन भूरा सियार को मौका मिल ही गया।
गर्मियों की एक दोपहर में बिल्लू शेर भर पेट खाने के बाद एक सूखे पेड़ के नीचे आराम फरमा रहा था। तभी तेज हवा के कारण पेड़ की एक डाल टूट कर नीचे गिर पड़ी। यह देख कर भूरा सियार ने आव देखा न ताव बिल्लू शेर की ओर दौड़ पड़ा और डाल के नीचे गिरने से पहले ही उसके ऊपर कूद कर उसे जगा दिया।
चौंक कर नीद से उठते ही बिल्लू शेर ने भूरा को दबोच लिया; वो तो अच्छा हुवा कि उसने ज्यादा जोर नहीं लगाया वरना सियार की हड्डियाँ चटकते देर न लगती। अभी पंजो में फॅसे सियार को देख कर बिल्लू शेर अपने ऊपर इस तरह कूदने के बारे में सोच ही रहा था कि टूट कर नीचे गिर रही डाल जमीन से आ टकरायी। इस आवाज को सुनने के बाद बिल्लू शेर को माजरा समझते देर नहीं लगी और उसने भूरा को छोड़ दिया। वैसे उसने धन्यवाद जैसा तो कुछ नहीं कहा, पर उसकी आँखों में निश्चित ही सियार के प्रति कृतघ्यता थी।
इसके बाद से भूरा सियार प्रायः बिल्लू शेर की माँद के आसपास दिखायी देने लगा और धीरे-धीरे उनकी जान-पहचान भी हो ही गयी। फिर समय बीतने के साथ पता नहीं कब और कैसे, पर यह जान-पहचान दोस्ती में बदल गयी।
इस दोस्ती की खबर धीरे-धीरे ही सही पर जंगल के जानवरो को भी हो ही गयी। और होती भी कैसे न? दोनों साथ ही शिकार पर जो निकलते थे और बिल्लू शेर के परिवार के खा लेने के बाद भूरा ही बचे हुवे मांस का बंटवारा करता था। इससे जहाँ एक ओर भूरा के परिवार को भरपेट भोजन मिलने लगा, वही दूसरी ओर जंगल के जानवरो के बीच भूरा का रौब भी बढ़ता चला गया।
शेर और सियार की दोस्ती पर जंगल में सभी हैरान थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर एक शेर को सियार की दोस्ती कि क्या जरूरत पड़ गयी?
इसके बाद यदा-कदा भूरा जानवरो को अपने शिकार के किस्से भी सुनाने लगा था। अब इन सब जानवरो ने तो बस बिल्लू शेर का मारा शिकार ही खाया था, कभी उसे शिकार करते तो देखा नहीं था। सो भूरा की बातो को सुन कर धीरे-धीरे ही सही पर उन्हें यकीन हो चला की बिल्लू शेर के शिकार की सफलता में भूरा सियार का बड़ा हाथ है और ये न हो तो बिल्लू शेर के परिवार को मांस के लाले पड़ जाये।
जंगल में सभी मानने लगे थे कि इसी कारण बिल्लू शेर ने भूरा को चिपका रखा है, वरना एक शेर का अदना से सियार से आखिर क्या वास्ता?
इस सब के कारण जंगल के जानवर भूरा सियार और उसके परिवार को सम्मान देने लगे थे – आखिर वही तो उन्हें मांस उपलब्ध करवाता था।
नयी-नयी मिली इज्जत और भरपेट पौष्टिक भोजन की ख़ुशी सच में भूरा सियार पचा नहीं पा रहा था। अपनी औकात को भूल उसके सिर पर तो अब एक नया ही फितूर चढ़ गया था।
जंगल में किसी को भनक भी नहीं लगी और भूरा सियार जंगल की सुरक्षा व मांस की समुचित उपलब्धता के साथ ही अन्य सम्बन्धित समस्याओ पर जानवरो के साथ बातचीत व विचार – विमर्श करते-करते इन पर मंत्रणा करने के लिये जानवरो की बैठक तक बुलवाने लगा।
एक तरफ भूरा सियार जानवरो पर अपना वर्चस्व बढ़ा रहा था तो वही दूसरी तरफ इस सब पर बिल्लू शेर की ओर से किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। यह सब देख कर जानवरो को भी लगने लगा कि पुष्पावती का असली राजा भूरा सियार ही है।
धीरे-धीरे ही सही पर भूरा सियार के ये सब किस्से किम्मो शेरनी तक भी पहुँचने लगे थे। पर बिल्लू शेर पर इस सब से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा; उसे भूरा की औकात भी पता थी और अपनी ताकत पर भी पूरा भरोसा था।
फिर एक दिन पानी सच में सिर से ऊपर गुजर गया।
भूरा ने बैठक बुलायी थी – सभी जानवरो की।
अपने शिकार के किस्से सुनाने के बाद भूरा ने फरमान जारी कर दिया –
“क्योंकि बिल्लू शेर अब पहले जैसा तेज-तर्रार नहीं रहा और इस जंगल में आज की तारीख में कोई भी मुझ सा शिकारी नहीं हैं, इसलिये बिल्लू शेर ने मुझे पुष्पावती का राजा बनाने का फैसला किया हैं।”
“अतः आज के बाद जंगल के सभी मांसाहारी जानवर मेरे निर्देशों में शिकार करेंगे और शिकार का पहला हिस्सा मेरे परिवार को मिलेगा।”
भूरा सियार की इस कारिस्तानी से बिल्लू शेर पूरी तरह अनभिज्ञ था। जंगल के अन्य मांसाहारी जानवरो के शिकार से उसे कुछ मतलब था नहीं। अतः उस की दिनचर्या पर इस सब का कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
पर भूरा सियार के दिन तो सच में फिर गये थे। अब उसे हर रोज बैठे-बिठाये गर्म ताजे गोश्त के सबसे लज़ीज हिस्से मिलने लगे थे।
इन दिनों वह बिल्लू शेर के पास भी कम ही जाता था।
घर पर बातचीत कर के वह पत्नी और बच्चो से अगले दिन के खाने के बारे में उनकी इच्छा जनता और उसी के अनुसार अगले दिन किये जाने वाले शिकार के बारे में अन्य जानवरो को निर्देश देता। फिर उसकी इच्छा के अनुरूप किये गए शिकार के लज़ीज हिस्से उसके घर पहुँच जाते।
धीरे-धीरे ही सही पर इस सब से जहाँ एक ओर जंगल के जानवरो के बीच बिल्लू शेर का प्रभाव कम होने लगा, वहीं दूसरी ओर भूरा सियार का अधिपत्य व प्रभाव बढ़ता चला गया। अब जंगल के जानवर भी बिल्लू शेर, किम्मो और उनके परिवार की भी पहले की तरह इज्जत नहीं करते थे। आते-जाते नजर पड़ने या दिखायी देने पर न ही पहले जैसा अदब रह गया था और न ही डर।
बिल्लू शेर को तो इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ता था, पर किम्मो समझ गयी कि जरूर दाल में कुछ काला हैं। सो अपने विश्वासपात्र बूढ़े भालू से बातचीत कर उसने पूरे घटनाक्रम के बारे में तसल्ली से पूरी जानकारी ली और फिर बूढ़े भालू को जंगल के जानवरो की एक बैठक बुलावाने को कहा।
किम्मो के कहे अनुसार बूढ़े भालू ने जल्द ही चालाकी से जंगल में तेजी से कम हो रही शाकाहारी जानवरो की संख्या और उसके जांगल पर सम्भावित दीर्घकालीन प्रभावों पर चिन्ता व्यक्त करते हुवे भूरा सियार को जानवरो की बैठक बुलाने के लिये मना लिया।
अब बैठक बुलायी तो किम्मो ने थी, पर भूरा को लग रहा था कि सारे के सारे जानवर उसी के बुलावे पर एकत्रित हो रहे है। बैठक में पुष्पावती के हर छोर से पहुँचे मांसाहारी जानवरो के हुजूम को देखकर उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। आज बिल्लू शेर के आसन पर बैठ कर उसे पहली बार जंगल का राजा होने का एहसास हो रहा था और वह चाह कर भी अपनी खुशी नहीं छुपा पा रहा था।
बैठक के आरम्भ में बूढ़े भालू ने भूरा सियार का शहद के छत्ते से स्वागत किया और सभी का अभिवादन करने के बाद बैठक के विषय में बताया।
“इधर पिछले कुछ समय से जंगल में काफी अव्यवस्थित तरीके से शिकार हो रहा है।”
“न ही प्रजनन काल का लिहाज रखा जा रहा है, और न ही बच्चो व गर्भवती मादाओं का।”
“यह सब जंगल के लिये ठीक नहीं है; इसके कारण असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो रही है जो हम सभी के लिये खतरे की घन्टी हैं।”
“पर यह सब तो भूरा सियार के कहने पर ही किया जा रहा है”, कल्लू चीता ने कहा।
“शायद भूरा सियार को छोटे बच्चे ज्यादा पसन्द हैं?”
“हाँ, बिल्लू शेर के समय बच्चो व गर्भवतियों के शिकार की मनाही थी और सभी बूढ़े, घायल व कमजोर जानवरो को ही निशाना बनाते थे”, रामदीन लकड़बग्गे ने बात आगे बढ़ाते हुवे कहा।
“आखिर इन सब को तो वैसे भी जंगल में मरना ही होता है। सो उनके शिकार से संतुलन बना रहता था और हम सबका काम भी चल जाता था।”
अभी जानवरो की बातचीत चल ही रही थी कि किसी तरह मान-मनौव्वल करके किम्मो भी बिल्लू शेर को ले कर बैठक में पहुँच गयी।
नजारा देख कर बिल्लू शेर का माथा ठनक गया।
उसे देखने के बाद भी न किसी ने आगे जाने को रास्ता दिया और न ही कोई अदब से अपनी जगह से खड़ा ही हुवा।
और ये क्या? बूढ़े भालू से ले कर रामदीन लकड़बग्गे तक हर कोई भूरा सियार के आगे हाथ बाँधे जंगल को बचाने के लिये अपने सुझाव देने में व्यस्त था।
और भूरा सियार शान से बिल्लू शेर के आसन पर पसरा जानवरो को निर्देश दे रहा था।
बिल्लू शेर को एक बार तो लगा जैसे उसका कोई अस्तित्व ही नहीं हैं और वह भी भूरा सियार के आगे हाथ बाँधे खड़ी जानवरो की भीड़ का एक हिस्सा भर है।
पर शेर तो आखिर शेर है।
उस दिन से पहले किसी भी जानवर ने भी इतनी नजदीक से शेर की दहाड़ नहीं सुनी थी। फिर दहाड़ भी बिल्लू शेर की थी और वो भी अपना आपा खो देने के बाद की।
पूरा का पूरा पुष्पावती बिल्लू की दहाड़ से काँप उठा था।
लगा जैसे आसमान फट गया हो।
जानवरो को समझ नहीं आया की आखिर हुवा क्या है। बस हर कोई सुरक्षित स्थान की ओर बदहवास सा भाग रहा था।
उस दिन के बाद से जंगल में न ही किसी ने भूरा सियार या उसके परिवार को देखा और न ही उनके बारे में कुछ सुना।
वो सब तो ऐसे गायब हुवे जैसे गधे के सिर से सींग।
कुछ कहते है वो बिल्लू का निवाला बन गये तो कुछ का कहना है की किम्मो का।
पर शेर तो शेर है, घास तो वो भूखा होने पर भी खाने से रहा।
सो मुमकिन है कि जानवरो की भगदड़ का फायदा उठा कर भूरा सियार परिवार सहित पुष्पवती पार कर गया हो। पर पुष्पवती के बहाव से पार पा सकना भी तो किसी सियार के बस की बात नहीं?
जितने मुँह उतनी बाते, और सच का किसी को पता नहीं।
सच है तो बस ये कि पुष्पावती के जंगल पर किसी का एकछत्र राज हैं तो बिल्लू शेर का और आज यहाँ भूरा सियार को न कोई याद करता है और न ही जानता हैं।
वैसे यू ही कहानी कहने या पढ़ने / सुनने का कोई मकसद नहीं रह जाता जब तक उससे कुछ सबक न लिया जाये।
इसलिये पढ़ने वालो के लिये एक प्रतियोगिता है और यहाँ आपको जवाब बस इतना देना है कि “आपको इस कहानी से क्या सबक मिलता है?”
आपके इन उत्तरो से जुड़े हमारे पास तीन बड़े इनाम है जिनका खुलासा हम होली पर करेंगे।
तब तक सांसे रोके रखिये और बताइये कि बिल्लू या भूरा ने कहाँ गलती की?
Anonymous says
Delhi to Delhi hai…