संता – भाई, अभी हाल तुमने कहा था कि aggradation मुख्यतः पहाड़ो से आने वाली नदियों में मैदानी क्षेत्र के आस- पास होता हैं, और इसका कारण नदियों के ढाल में होने वाला अचानक परिवर्तन हैं।
बंता – हाँ, एकदम ठीक समझा तुमने।
ऐसा ही बताया था मैंने कि ढाल में होने वाले अचानक परिवर्तन के कारण पानी कि गति और बहा कर ले जाने की क्षमता काम होती हैं।
संता – पर नदी तल के ऊपर उठने की खबरें तो यहाँ पहाड़ो से भी आ रही हैं।
बंता – हाँ, अभी हाल उत्तरकाशी व बागेश्वर से ऐसा ही कुछ सुनने को मिला हैं।
संता – तो फिर?
बंता – भाई एक बात समझो; नदी तल पर मलबा पहाड़ो में जमा हो या फिर मैदानी इलाको में, खेल तो सारा का सारा नदी की बहा कर ले जाने की क्षमता में आयी कमी का हैं।
संता – मतलब?
बंता – अब मलबा तो तभी पीछे छूटेगा ना जब नदी उसे बहा कर आगे नहीं ले जा पायेगी। वरना तो यह सब नदी के साथ ही बह कर आगे निकल जायेगा।
संता – यानि पहाड़ो में हो या मैदानी क्षेत्र में, कारण एक ही हैं।
बंता – अब ऐसा हैं भी और नहीं भी।
संता – तुम भी ना, बस गोल-गोल घुमाने लगते हो।
बंता – गोल-गोल नहीं भाई, मलबा जमा तो बहा कर ले जाने की क्षमता के कम होने के कारण ही होता हैं, पर इस क्षमता के कम होने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं।
संता – ऐसा क्यों?
बंता – सब से पहले यह कि आज पहाड़ो में विभिन्न कारणों से अधिक मलबा उत्पन्न होने लगा हैं।
संता – कैसे कारण?
बंता – एक तो पिछले कुछ समय में यहाँ सड़क, रेल व अन्य निर्माण कार्यो के लिये पहाड़ों को काटा जा रहा है, जिसके कारण उत्पन्न होने वाले मलबे की मात्रा में बेतहाशा वृद्धि हुयी हैं।
फिर हम कोशिश चाहे कितनी भी क्यों न कर ले इस में से ज्यादातर मलबा लुढ़क या बह कर आखिरकार नदी तल तक पहुँच ही जाता हैं।
फिर वर्तमान में बढ़ रही भारी वर्षा या बादल फटने की घटनाओ के कारण एक ओर जहाँ इस से जुड़े भू-स्खलन भी मलबा पैदा करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर उत्पन्न हो रहे मलबे के नदी तल तक पहुँचने की सम्भावना बढ़ जाती हैं।
संता – हाँ, मलबा तो सच में ज्यादा उत्पन्न हो रहा हैं।
बंता – ज्यादा मलबा और नदियों की कम हो रही बहा कर ले जाने की क्षमता।
ऐसे में नदी तल तो ऊपर ही उठेगा ना?
संता – बहा कर ले जाने की क्षमता कैसे कम हो रही हैं?
बंता – नदियों में बने बाँधो के कारण आज कुछ क्षेत्रों में तो नदी का पानी बह ही नहीं रहा हैं।
संता – हाँ बताया था तुमने कि नदियों की बहा कर ले जाने की क्षमता पानी की गति से सम्बन्धित हैं।
बंता – जब पानी में कोई वेग ही नहीं होगा तो ना नदी कटाव करेगी और ना ही रेत, कंकड़, पत्थर को बहा कर आगे ले जा पायेगी।
अब भागीरथी को ही देख लो – मनेरी, जोशियाड़ा, टिहरी व कोटेश्वर – 86 किलोमीटर कि दूरी में चार बांध हैं और टिहरी व चिन्यालीसौड़ के बीच तो भागीरथी नदी की जगह झील में तब्दील हो चुकी हैं।
ऐसे में रेत-बालू जिसे बह कर ऋषिकेश, हरिद्वार तक पहुँच जाना था, वह आज चिन्यालीसौड़ के आस-पास जमा हो जा रहा हैं।
संता – भाई, यही हाल अलकनंदा का भी हैं।
ऐसे ही हालत रहे तो आने वाले समय में तो ऋषिकेश, हरिद्वार में रेत-बालू की मारामारी शुरू हो जायेगी।
बंता – और साथ ही निर्माण कार्यो की लागत में बढ़ोत्तरी।
संता – ऐसे में क्या सरकार को इन बांधो पर रेत-बालू का एक नया कर नहीं लगाना चाहिये ?
बंता – अब कर लगाना या न लगाना, या फिर कर की संस्तुति करना मेरा काम तो हैं नहीं।
यह सब सरकार का काम हैं, और इसे सरकार के ऊपर छोड़ना ही ठीक रहेगा।
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