गर्मियों में लोगो का पहाड़ो की ओर रुख करना स्वाभाविक है, और तापमान में अचानक व अप्रत्याक्षित वृद्धि होने पर आने वाले लोगो की तादात में बढ़ोत्तरी होने में भी कुछ अस्वाभाविक नहीं हैं।
यहाँ उत्तराखण्ड में चारधाम यात्रा के नाम से जानी जाने वाली बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री की यात्रा हर साल मई व अक्टूबर – नवम्बर के बीच संचालित होती है और इसके बाद उच्च हिमालयी क्षेत्र में अत्यधिक ठंड व बर्फ़बारी होने के कारण सभी देवी – देवता अपने शीतकालीन प्रवास स्थान पर आ जाते हैं – बद्रीनाथ जी जोशीमठ, केदारनाथ जी उखीमठ, तो गंगा मइया मुखबा और यमुना मइया खरसाली। जब देवी – देवता ही न हो तो इस अवधि में इन धामों को खुले रखने का कोई औचित्य नहीं रह जाता हैं। अतः देवी – देवताओ के शीतकालीन प्रवास स्थान पर चले जाने के उपरान्त इन धामों के कपाट दर्शनार्थियों के लिये बन्द कर दिये जाते हैं।
चार धाम यात्रा जहाँ एक ओर तीर्थयात्रियों को मैदानी क्षेत्र की गर्मी से निजात देती हैं, तो वहीं दूसरी ओर हिन्दू मान्यता के अनुसार इससे वैकुण्ठ व मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता हैं।
विशेष रूप से 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद से ज्यादातर लोग मानसून अवधि में पहाड़ी क्षेत्र में सम्भावित बाढ़ व भू-स्खलन से होने वाली असुविधा से बचने के लिये बरसात शुरू होने से पहले ही चारधाम यात्रा पूरी कर लेना चाहते है।
ऐसे में इन धामों के कपाट खुलने के साथ ही दर्शनार्थियों की भीड़ जुटना आरम्भ हो जाती हैं।
अब इसे कोविड जनित प्रतिबन्धों की प्रतिक्रिया कहें या फिर वर्तमान में मैदानी क्षेत्र में पड़ रही भीषण गर्मी का परिणाम, पर इस साल आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या हर किसी के अनुमान से कहीं अधिक हैं।
फिर अभी हाल तक यात्रियों का ज्यादातर जमावड़ा बद्रीनाथ में ही होता था, और अन्य धामों में कम ही तीर्थयात्री जाते थे। अब इसे प्रधानमंत्री मोदी जी के जुड़ाव का प्रतिफल कहना निश्चित ही अतिश्योक्ति या चरण वन्दना नहीं होगी क्योकि विगत के सालो से इतर इस साल की यात्रा अवधि में अब तक केदारनाथ में भी बद्रीनाथ के बराबर ही यात्री आ चुके हैं।
आज यात्रा आरम्भ हुवे बस 01 माह ही हुवा है; गंगोत्री व यमुनोत्री के कपाट 3 मई को खुले थे तो केदारनाथ के 6 मई को और बद्रीनाथ के 8 मई को।
सो यात्रा आरम्भ होने के पहले एक महीने में 3 जून 2022 तक गंगोत्री में 271764, यमुनोत्री में 203294, केदारनाथ में 467524, तो बद्रीनाथ में 505895 तीर्थयात्री माथा टेक चुके हैं।
यहाँ तक शायद आप यात्रियों की भारी भीड़ के प्रबन्धन, सम्भावित भगदड़, साफ- सफाई व अन्य व्यवस्थाओ के साथ-साथ सम्भावित पर्यावर्णीय जोखिमों के बारे में सोच रहे हो, पर यदि खुलासा किया जाये कि इन 3-4 हफ्तों में स्वास्थय कारणों से 128 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो चुकी हैं, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
अब पर्यटक हो या तीर्थयात्री- घर से निकलता तो हर कोई आराम करने व खुश रहने के लिये ही हैं।
फिर हर कोई साफ़ जानता है कि यात्रा के बीच में कोई अनहोनी होने पर उसके परिवार व प्रियजनों को अनेको परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। सो यह कहना कि मोक्ष के नाम पर लोग जोखिम लेते है, कुछ हजम नहीं होता हैं।
अब मरने वालो से जुड़े आकड़ो पर ध्यान दे तो ज्यादातर (77%) पुरुष है – आने वालो में पुरुषो की संख्या ज्यादा होने के कारन ऐसा होना स्वाभाविक हैं परन्तु पुरुष ज्यादा तो हैं (57%) पर इतने भी ज्यादा नही कि मरने वालो में पुरुषो की अधिक संख्या का औचित्य सिद्ध किया जा सके।
मरने वालो की आयु की बात करे तो पुरुषो में 36% की आयु 61 से 65 वर्ष के बीच थी और महिलाओँ में 60% की 55 से 65 वर्ष के बीच।
जैसा कि शायद आपने भी निष्कर्ष निकाल ही लिया होगा ज्यादातर मृत्यु केदारनाथ (43%) व यमुनोत्री मार्ग (27%) पर हुवी है जहाँ यात्रियों को लम्बी दूरी तक पैदल चलना पड़ता है और कारणों की बात करे तो हृदय गति रुकना मृत्यु का प्रमुख कारण हैं। फिर कोविड से उबरने के बाद शरीर व स्वास्थ्य पर किस प्रकार के प्रभाव पड़ रहे है उन के बारे में किसी को भी सटीक जानकारी नहीं हैं।
मानव क्षति जैसे भी और जहाँ भी हो, उसकी विवेचना तो बनती है। सो कारणों की खोज कर आगे की रणनीति बनाने हेतु सुझाव देने की दिशा पकड़ते हैं।
अब इसे अपने भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सतत प्रयासों का फल नहीं तो और क्या कहेंगे कि आज चार धाम यात्रा पहले की तरह दुरूह नहीं रह गयी हैं – सुबह सबेरे दिल्ली– गाज़ियाबाद से चलने पर ज्यादातर यात्री शाम तक अपने चुने धाम के आस-पास तक पहुँच ही जा रहे हैं।
जाहिर हैं इससे समय और संसाधनों की बचत हो रही है पर दिल्ली– गाज़ियाबाद की तपती धूप से एक ही दिन में 3 किलोमीटर की ऊंचाई माप कर 12-16 घण्टो में गंतव्य तक पहुंच जाने में सच में कोई बहादुरी नहीं हैं।
थकान के अलावा, हमारे शरीर के लिये तो यह बस एक सदमे की तरह है और इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना निश्चित है।
ऐसे में जरूरी हो जाता हैं कि आने वाले व्यक्तियों को आराम से यात्रा करने व क्षेत्र कि नैसर्गिक सुन्दरता का आनन्द लेने के लिये प्रेरित किया जाये, बिना रुके व आराम किये भागमभाग कर के उच्च हिमालयी क्षेत्र में पहुँच जाने के जोखिमों से परिचित करवाया जाये, जानकीचट्टी व गौरीकुंड से आगे की यात्रा के लिये 50 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये स्वास्थ्य परीक्षण अनिवार्य किया जाये और साथ ही चार धाम के अलावा अन्य धार्मिक व पर्यटक स्थलों को विकसित व प्रचारित किया जाये ताकि यहाँ आने वाला व्यक्ति कुछ और दिन रुकने के बारे में विचार करे।
फिर इससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी व सुरक्षित उत्तराखण्ड का सन्देश जायेगा।
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