Get to know as to how XV Finance Commission devised Disaster Risk Index and utilised the same for allocating resources to the states for managing disasters. It is really simple and straight forward, and you can very well utilise Disaster Risk Index methodology of XV Finance Commission for getting to know the risk of various hazards on the districts of your state or tehsils in your district using various datasets that are freely available. It really requires no technical expertise. So, why not take a dip and try it out risk assessment using Disaster Risk Index methodology of XV Finance Commission.
15वे वित्त आयोग की संस्तुतियों के क्रम में प्राप्त न्यूनीकरण, पूर्वतैयारी, क्षमता विकास, पुनर्प्राप्ति एवं पुनर्निर्माण सम्बन्धित संसाधनों से अभिभूत ज्यादातर व्यक्तियों को आपदा प्रबन्धन सम्बन्धित संसाधनों की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी व बदलाव के कारणों की विवेचना करने की शायद आवश्यकता ही महसूस नहीं होती हैं।
दशकों से आपदा उपरान्त राहत के मोहपाश से छुटकारा पाना अब इतना सरल भी नहीं था।
सो इन सब बदलावों की पैरवी व संस्तुति करने से पहले, पूर्व के वित्त आयोगों से इतर 15वे वित्त आयोग ने राज्यों के द्वारा विगत में आपदा प्रबन्धन सम्बन्धित प्रयोजनों के लिये व्यय की गयी धनराशि के साथ ही 14वे वित्त आयोग की संस्तुति के अनुरूप राज्यों को दी जाने वाली धनराशि में वस्तुनिष्ठता लाने के उद्देश्य से एक सरल विधि का उपयोग कर राज्यों के लिये आपदा जोखिम सूचकांक का निर्धारण किया गया।
आपदा जोखिम सूचकांक के बिना शायद यह बदलाव सम्भव नहीं हो पाता।
अब आप में से ज्यादातर उपयोग में लायी गयी विधि को निश्चित ही साधारण कह सकते हैं, पर 2020 के बाद इतने साल बीत जाने के बाद कितने राज्यों ने इस विधि का उपयोग कर अपने जनपदों के लिये ऐसा कोई सूचकांक विकसित किया हैं?
मुझे याद नहीं आता कोई राज्य, जिसने ऐसा किया हो।
हो सकता हैं हम में से ज्यादातर व्यक्तियों ने उपलब्ध हो गये संसाधनों की चकाचौंध और उन्हें खर्च करने कि होड़ में 15वे वित्त आयोग के द्वारा उपयोग में लायी गयी विधि पर गौर करने कि आवश्यकता ही न समझी हो।
खैर, आपदा जोखिम सूचकांक के लिये 15वे वित्त आयोग के द्वारा की गयी कयावद के अन्तर्गत पूर्व में घटित आपदाओं के आंकड़ों के साथ ही विभिन्न संस्थाओ व संस्थानों द्वारा तैयार किये गये जोखिम मानचित्रो व उपलब्ध आर्थिक-सामाजिक आंकड़ों का विश्लेषण कर राज्यों पर आसन्न संकट व उनकी घातकता के लिये अंक निर्धारित किये गये, और राज्यों पर आसन्न जोखिम के आधार पर उन्हें वर्गीकृत किया गया।
परिष्कृत आंकड़ों के साथ काम कर रहे व्यक्तियों को यह सब मजाक लग सकता हैं, पर आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में काम कर रहे व्यक्ति मानेंगे कि आपदा व उसके प्रभावों से जुड़े वस्तुनिष्ट आंकड़े, और वह भी पूरे देश के लिये एक ही प्रारूप में मिल पाना आसमान से तारे तोड़ कर लाने से किसी भी प्रकार कम नहीं हैं।
ऐसे में जो किया गया वो किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं हैं।
संकट आंकलन (Hazard Assessment)
संकट का तात्पर्य विनाश या क्षति पहुँचा सकने की क्षमता रखने वाली भौतिक घटनाओ से हैं, जैसे कि भूकम्प, बाढ़, चक्रवात या भू-स्खलन और संकट के रूप में परिभाषित किये जाने के लिये इनके द्वारा वास्तव में क्षति का किया जाना आवश्यक नहीं हैं और ज्यादातर स्थितियों में क्षति इनके मानवीय बसावत व गतिविधियों के सम्पर्क में आने पर ही होती हैं और क्षति का परिमाण आबादी के घनत्व, अवसंरचनाओं की स्थिति, समुदाय की आर्थिक- सामाजिक स्थिति तथा आर्थिक गतिविधियों के स्तर पर निर्भर होता हैं और इन को घातकता के माध्यम से आंकलित किया जाता हैं।
आपदा के लिये संकट व घातकता की संलिप्तता होने के दृष्टिगत तथा संकट को आपदा का मूल कारक मानते हुवे कुल 100 अंको में से 70 अंक संकट के लिये निर्धारित किये गये हैं और 30 अंक घातकता के लिये।
15वे वित्त आयोग के द्वारा मुख्यतः पूरे देश को प्रभावित करने वाली 04 मुख्य आपदाओं, यथा बाढ़, सूखा, चक्रवात व भूकम्प को संज्ञान में लिया गया और प्रत्येक के लिये प्रभावों की बढ़ती हुयी तीव्रता के आधार पर 0, 5, 10 व 15 अंको की व्यवस्था की गयी।
इसके साथ ही प्रायः सभी राज्यों को प्रभावित करने वाले स्थानीय संकटो के लिये 10 अंको की व्यवस्था करते हुवे इस प्रकार संकटो के लिये अधिकतम 70 अंको का प्रावधान किया गया।
बाढ़ (Flood)
15वे वित्त आयोग के द्वारा राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के द्वारा किये गये बाढ़ प्रवत्त क्षेत्रों के आंकलन के साथ ही ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के कार्य समूह द्वारा इंगित बाढ़ प्रवत्त क्षेत्रों के विस्तार से सम्बन्धित बाढ़ के आंकड़ों के आधार पर राज्यों के बाढ़ से प्रभावित होने वाले भौगोलिक क्षेत्रफल का आंकलन करते हुवे
- प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्रफल के 20 प्रतिशत से अधिक के बाढ़ से प्रभावित होने की स्थिति में 15 अंक,
- भौगोलिक क्षेत्रफल के 10 से 20 प्रतिशत के बाढ़ से प्रभावित होने वाले राज्यों के लिये 10 अंक, तथा
- 10 प्रतिशत से कम भौगोलिक क्षेत्रफल के बाढ़ से प्रभावित होने वाले अवशेष राज्यों के लिये 5 अंको की व्यवस्था की गयी
ब्रह्मपुत्र व सियांग नदियों में आने वाली बाढ़ से नियमित रूप से प्रभावित होने के कारण 15वे वित्त आयोग के द्वारा 10 प्रतिशत से कम भौगोलिक क्षेत्रफल के बाढ़ से प्रभावित होने पर भी अरुणाचल प्रदेश को उच्च बाढ़ प्रवत्त राज्य माना गया। इस परिप्रेक्ष्य में तमिलनाडु दूसरा अपवाद है जिसे विगत में भारी बाढ़ से प्रभावित होने के कारण 10 अंक दिये गये।
साथ ही 15वा वित्त आयोग उत्तराखण्ड, झारखण्ड व छत्तीसगढ़ की लिये बाढ़ से सम्बन्धित आंकड़े एकत्रित नहीं कर पाया। नदियों के घने जाल के साथ ही विगत में 2013 व अन्य वर्षो में प्रायः बाढ़ से प्रभावित होने के कारण उत्तराखण्ड के लिये 15 अंक निर्धारित किये गये। इसके विपरीत भारी बाढ़ से प्रभावित ना होने के कारण झारखण्ड व छत्तीसगढ़ के लिये 5 अंक निर्धारित किये गये।
15वे वित्त आयोग के द्वारा पहाड़ी राज्यों के प्रायः बाढ़ से प्रभावित होने के तथ्य को स्वीकारने पर भी इनको अल्प-अवधीय त्वरित बाढ़ मानते हुवे इन राज्यों को उच्च बाढ़ प्रवत्त राज्य नहीं माना गया।
सूखा (Drought)
- देश के कुल फसल क्षेत्र का लगभग 68 प्रतिशत सूखे के प्रति संवेदनशील हैं और इसमें से 33 प्रतिशत में औसत वार्षिक वर्षा का परिमाण 750 मिलीमीटर से कम होने के कारण इसे चिरकालिक सूखा प्रवत्त क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया हैं।
- 750 से 1125 मिलीमीटर औसत वार्षिक वर्षा वाले कुल फसल क्षेत्र के लगभग 35 प्रतिशत भाग को सूखा प्रवत्त क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया हैं।
- सूखा प्रवत्त क्षेत्र मुख्यतः देश के प्रायद्वीपीय तथा पश्चिमी भाग के शुष्क, अर्ध-शुष्क व निम्न-आर्द्र क्षेत्रों तक सीमित हैं।
- भौगोलिक क्षेत्रफल के सापेक्ष चिरकालिक सूखा प्रवत्त क्षेत्र की अधिकता वाले राज्यों के लिये 15 अंक निर्धारित किये गये
- भौगोलिक क्षेत्रफल के सापेक्ष सूखा प्रवत्त क्षेत्र की अधिकता वाले राज्यों के लिये 15 अंक निर्धारित किये गये
- उत्तराखण्ड, गोवा व पूर्वोत्तर राज्यों के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों को सूखे के लिये 5 अंक दिये गये
आंध्र प्रदेश, गुजरात, बिहार, ओडिशा तथा उत्तर प्रदेश में बाढ़ के साथ ही सूखे का जोखिम भी सर्वाधिक हैं। इन राज्यों का भौगोलिक क्षेत्रफल अधिक होने के कारण नदियों के घने तंत्र वाले इनके कुछ क्षेत्रों में तो अच्छी वर्षा होती हैं पर दूसरे भाग को शुष्क व अर्ध-शुष्क क्षेत्र में अवस्थित होने के कारण सूखे का सामना करना पड़ता हैं।
शुष्क व अर्ध-शुष्क क्षेत्र में अवस्थित कुछ राज्यों के बादल फटने से होने वाली त्वरित बाढ़ की घटनाओ से प्रभावित होने के दृष्टिगत 15वे वित्त आयोग के द्वारा भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ व सूखे की घटनाओ में वृद्धि होने की आशंका व्यक्त की गयी।
विगत के वर्षो में राजस्थान को भारी बाढ़ का सामना करना पड़ा, तो वही बिहार सूखे से प्रभावित रहा। यही नहीं, विगत 10 में से 8 वर्षो में बिहार में औसत से कम वर्षा हुयी। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड क्षेत्र वर्षो से सूखे का सामना कर रहा हैं। 15वे वित्त आयोग के द्वारा मौसमी वर्षा में हो रहे बदलाव के कारण उत्पन्न इस समस्या को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगो के कष्टों के लिये उत्तरदायी माना गया।
15वे वित्त आयोग के द्वारा तेजी से बदल रहे परिदृश्य के कारण एक ही समय में घटित हो रही बाढ़ व सूखे की घटनाओ के दृष्टिगत जलवायु परिवर्तन जनित संकट व जोखिम परिदृश्य का निरन्तरता में आंकलन करने की संस्तुति की गयी।
चक्रवात (Cyclone)
- चक्रवात मुख्यतः समुद्र तटीय राज्यों को प्रभावित करता है
- इन में से अति उच्च चक्रवात प्रवत्त जनपदों वाले आंध्र प्रदेश, ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल के लिये 15 अंक निर्धारित किये गये
- उच्च चक्रवात प्रवत्त जनपदों वाले तमिलनाडु, केरल तथा गुजरात के लिये 10 अंक निर्धारित किये गये
- केरल में कोई भी उच्च चक्रवात प्रवत्त जनपद न होने पर भी राज्य के सभी 14 जनपदों पर आसन्न उच्च चक्रवात जोखिम के दृष्टिगत केरल को भी 10 अंक दिये गये
- उपरोक्त के अतिरिक्त कर्नाटक, गोवा व महाराष्ट्र को 5 अंक दिये गये
15वे वित्त आयोग के द्वारा पूर्वी व पश्चिमी, दोनों ही समुद्र तटों में विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही चक्रवात की बारम्बारता को संज्ञान में लेते हुवे राज्यों को दिये गये अंको का समय बीतने के साथ फिर से आंकलन करने की संस्तुति की गयी।
भूकम्प (Earthquake)
- देश के भूकम्प वर्गीकरण के अनुसार जोन-V व जोन-IV उच्च जोखिम क्षेत्र के रूप में परिभाषित हैं
- भूकम्प वर्गीकरण के अनुसार जोन-III व जोन-II न्यून जोखिम क्षेत्र के रूप में परिभाषित हैं
- इस वर्गीकरण के अनुसार पूर्वोत्तर व हिमालयी राज्यों के साथ – साथ बिहार, गुजरात व महाराष्ट्र पर आसन्न भूकम्प का जोखिम सर्वाधिक हैं। अतः इन राज्यों को 15 अंक प्रदान किये गये
- पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश पर आसन्न माध्यम भूकम्प जोखिम के दृष्टिगत इस राज्यों को 10 अंक प्रदान किये गये
- अन्य सभी राज्यों को 5 अंक प्रदान किये गये
अन्य संकट (Other Hazards)
15वे वित्त आयोग के द्वारा बाढ़, सूखा, चक्रवात व भूकम्प के अतिरिक्त प्रायः सभी राज्यों के अन्य स्थानीय संकटो, यथा भू- स्खलन, हिम-स्खलन, बादल फटने, ओलावृष्टि, बज्रपात व अन्य से प्रभावित होने को भी संज्ञान में लिया गया।
इस स्वीकारोक्ति के साथ कि सभी राज्य इस प्रकार के किसी न किसी स्थानीय संकट का सामना करते हैं, सभी राज्यों के लिये 10 अंक निर्धारित किये गये।
घातकता आंकलन (Vulnerability Assessment)
घातकता का तात्पर्य व्यक्तियों व समुदायों की संकट का पूर्वाभास कर पाने, उसका सामना कर सकने, तथा उसके प्रभावों से उबर पाने की सामर्थ्य से हैं। घातकता के अन्तर्गत आर्थिक, सामाजिक व अन्य सभी पक्षों का समावेश हैं और व्यक्तियों व समुदायों को प्रभावित करने वाले आजीविका, जीवन-यापन व आवास जैसे अन्य सभी पक्ष इनमे समाहित हैं।
अतः घातकता के आधार पर आपदा की तीक्ष्णता व प्रभावों के परिमाण का बेहतर रूप से विश्लेषण किया जा सकता हैं।
- 15वे वित्त आयोग के द्वारा तेंदुलकर पद्धति के अनुसार वर्ष 2011-12 में राज्य में गरीबी की रेखा से नीचे की आबादी के आधार पर घातकता अंक निर्धारित किये गये
- 26 प्रतिशत व अधिक की गरीबी दर वाले राज्यों के लिये सर्वाधिक 30 अंक निर्धारित किये गये
- 13 प्रतिशत से कम गरीबी दर वाले राज्यों के लिये 10 अंक निर्धारित किये गये
- 13 व 26 प्रतिशत गरीबी दर वाले अन्य सभी राज्यों के लिये 20 अंक निर्धारित किये गये
वर्ष 2011-12 में अविभाजित आंध्र प्रदेश की गरीबी दर को आंध्र प्रदेश व तेलंगाना दोनों के ही लिये प्रयुक्त किया गया।
आपदा जोखिम सूचकांक (Disaster Risk Index)
राज्यों पर आसन्न आपदाओं के जोखिम को वस्तुनिष्ठ रूप से समझने व उपयोग में लाने के लिये 15वे वित्त आयोग के द्वारा संकट व घातकता के आधार पर निर्धारित अंको को जोड़ते हुवे एक वस्तुनिष्ठ आपदा जोखिम सूचकांक (Disaster Risk Index; DRI) का निरूपण किया गया।
इस सूचकांक में सर्वाधिक 90 अंको के साथ ओडिशा शीर्ष पर, 35 अंको के साथ गोवा अंत में तथा 50 अंको के साथ उत्तराखण्ड 21वे स्थान पर है।
संसाधनों के आवंटन के साथ ही पूर्व के वित्त आयोगों द्वारा अपनायी गयी व्यय आधारित आवंटन प्रणाली की कमियों को दूर करने के उद्देश्य से किया गया 15वे वित्त आयोग का यह प्रयास निश्चित ही अभिनव व पूर्व के दृष्टांतो से सर्वथा मुक्त होने के कारण नवाचार की श्रेणी में आता हैं। समय बीतने के साथ मिलने वाले अनुभवों के आधार पर भविष्य में यह आपदा जोखिम सूचकांक और अधिक परिष्कृत होगा।
अभी के लिये 15वे वित्त आयोग द्वारा उपयोग में लायी गयी विधि का उपयोग कर के राज्य अपने जनपदों व तहसीलों का आपदा जोखिम सूचकांक तो तैयार कर ही सकते हैं और इसके लिये वह राज्य के सांख्यिकी विभाग द्वारा नियमित रूप से एकत्रित किये जाने वाले अनेको आंकड़ों का सहज ही उपयोग कर सकते हैं। इससे और कुछ हो या ना हो, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये संसाधनों के आवंटन से जुड़ी प्राथमिकताये वस्तुनिष्ठता के साथ तैयार हो पायेंगी और अनावश्यक पैरवी व दबाव से बचा जा सकेगा। पैसा सही जगह खर्च होगा तो निश्चित ही यह आपदा सुरक्षित भारत की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
Anonymous says
Good efforts
Nicely written