संता – बंता भाई, नये साल की ढेर सारी बधाई।
बंता – तुम्हे भी ढेर सारी बधाइयाँ, संता भाई।
और साथ ही हमारे सभी साथियों, पाठको व उनके परिवार के सभी सदस्यों को भी नये साल की ढेर सारी बधाई।
संता – भाई, आपदाओं के कारण यहाँ उत्तराखण्ड में काफी जनहानि होती हैं ना?
बंता – सो तो हैं। हर साल छोटी-बड़ी घटनाओं में काफी लोग मारे जाते हैं।
संता – यहाँ तो दूर-दराज से भी तो काफी लोग आते हैं।
बंता – हाँ, ज्यादातर पर्यटन व तीर्थाटन के लिये।
पर कइयों की नीयत रोमांच या फिर अपनी खुद की हदो की परीक्षा लेना भी होता हैं – विशेष रूप से राफ्टिंग, बंजी जंपिंग, ट्रेकिंग, व पर्वतारोहण के लिये आने वाले।
संता – कभी-कभार ही सही, पर बाहर से आने वाले यह लोग भी तो आपदाओं की चपेट में आते ही होंगे?
और ऐसे में तो निश्चित ही कई दूसरी समस्यायें भी उत्पन्न होती होंगी?
बंता – सो तो हैं।
यहाँ नजदीक में इनका कोई जान-पहचान वाला होता नहीं हैं।
फिर यह लोग जगह से भी अनजान होते हैं।
इन लोगो को पता ही नहीं होता हैं कि कहाँ जाना हैं, किससे सम्पर्क करना हैं, कहाँ मदद मिलेगी?
संता – फिर ऐसी परिस्थितियों में असुरक्षा, संशय, घबराहट व डर का होना भी स्वाभाविक ही हैं।
बंता – ठीक कहा तुमने, अचानक से कुछ अप्रत्याक्षित हो जाने के कारण इनकी दिमागी हालत सामान्य नहीं होती हैं।
संता – और ऐसे में यदि घर से दूर यहाँ उत्तराखण्ड में, वो भी आपदा के कारण किसी अपने की मौत हो जाये तो?
बंता – वैसे तो भाई ऐसा होता ही रहता हैं; आपदा के अलावा स्वस्थ्य सम्बन्धित कारणों से भी।
संता – तो सामान्य हैं ये सब?
बंता – ऐसा तो नहीं कहा मैंने, भाई।
सच कहे तो उन परिस्थितियों से गुजर रहे व्यक्ति की मनःस्थिति को समझ पाना किसी के लिये भी सरल नहीं हैं।
यहाँ वो सब साथ में घूमने-फिरने, मौज करने या फिर पुण्य कमाने आये थे।
फिर अचानक कोई हादसा और साथ में आये किसी साथी या परिजन का यहाँ परदेश में मर जाना अपने आप में किसी बड़ी व्यक्तिगत आपदा से कम नहीं हैं, और इस मौत की ग्लानि से निजात पा पाना निश्चित ही बच गये व्यक्तियों के लिये भी सरल नहीं होता होगा।
संता – तो भाई ऐसे में करते क्या हैं ये लोग?
बंता – ज्यादातर स्थितियों में परिजन शव को अन्तिम संस्कार के लिये अपने पैत्रिक स्थान पर ही ले जाना चाहते हैं।
संता – हवाई जहाज से तो ले ही जा सकते हैं।
फिर आजकल यहाँ देहरादून से ज्यादातर जगहों के लिये हवाई सेवा भी हैं ही?
बंता – ले जाने में तो कोई परेशानी नहीं हैं, पर उसके लिये कुछ औपचारिकतायें जरूर पूरी करनी होती हैं।
मृत्यु प्रमाण पत्र, शव की एम्बाल्मिंग, कॉफिन के सम्बन्ध में बनाने वाले का प्रमाण पत्र व पुलिस का अनापत्ति प्रमाण पत्र।
संता – और टिकट भी तो लगता होगा ना?
बंता – हाँ, टिकट तो मैं भूल ही गया था। सबसे जरूरी तो वही हैं।
संता – उस पर तो काफी खर्चा भी काफी करना पड़ता होगा?
बंता – अब बैलगाड़ी तो हैं नहीं, सो महंगा भी हैं।
फिर शव को ले जाने के लिये इतना खर्च कर पाने की हर किसी की सामर्थ्य तो होती नहीं हैं।
और यहाँ परदेश में अनजान लोगो के बीच जुगाड़ कर पाना भी तो सरल नहीं होता।
संता – तो फिर ऐसे में तो ये इन सब लोगो के लिये दूसरी आपदा हैं ?
बंता – आपदा प्रभावितो की मनोदशा व पीड़ा महसूस करने व समझते हुवे ही तो हमारी उत्तराखण्ड सरकार ने द्रौपदी का डांडा में हुवे हिम-स्खलन के बाद 8 अक्टूबर 2022 इसके लिये एक विशेष व्यवस्था की हैं।
संता – हैं क्या यह व्यवस्था?
बंता – संता भाई, सच कहो तो आपदा प्रभावितो की मदद करने की कोशिश तो हर कोई करता हैं, और सरकार की कोशिशों को तो सब शुरू से नकार ही देते हैं।
इस लिहाज से उत्तराखण्ड सरकार के द्वारा की गयी यह पहल देश भर में अनूठी और अकेली हैं।
संता – अब इतना भी सस्पेंस मत बनाओ, कुछ बता भी दो।
बंता – इस व्यवस्था के अनुसार राज्य में आपदा के कारण मरने वाले व्यक्ति के शव को उसके घर तक पहुँचाने पर होने वाले पूरे के पूरे खर्च का वहन राज्य सरकार के द्वारा किया जाता हैं।
अब यह परिजनों के ऊपर हैं कि कैसे ले जाते हैं – हवाई जहाज या किसी अन्य माध्यम से। ले जैसे भी जाये व्यवस्था के साथ ही खर्च राज्य सरकार के द्वारा ही किया जायेगा।
संता – यह तो सच में अनूठी पहल हैं उत्तराखण्ड सरकार की।
बंता – यही नहीं, ऐसी स्थिति में मरने वाले व्यक्ति के साथ आये उसके परिजनों की वापसी यात्रा की व्यवस्था भी हमारी सरकार ही करती हैं।
संता – क्या बात हैं।
यह तो सोने पे सुहागा हुवा।
भाई, यदि उत्तराखण्ड की तरह सभी राज्य सरकारें ऐसा कर दे, तब तो कोई झंझट ही ना रहे।
बंता – सच कहें तो इसकी वजह से द्रौपदी का डांडा में घटित आपदा के बाद काफी सहूलियत रही।
और शायद कोई माने भी ना, पर इस आपदा में मरे कई व्यक्तियों के शव हमारी सरकार ने बिना उनके परिजनों के यहाँ आये भी उनके घर तक पहुँचाये थे।
वैसे तो आपदा में किये गये काम पर श्रेय लेने का मैं व्यक्तिगत रूप से विरोधी रहा हूँ, पर जिस निष्काम भाव से यह सब किया गया उसके लिये राज्य सरकार की तारीफ तो की ही जानी चाहिये।
संता – सही कह रहे हो भाई। अब जिसने काम किया हैं उसे उत्साहवर्धन के लिये ही सही पर मान तो जरूर ही मिलना चाहिये।
बंता – वो हैं ना अपनी देहरादून की जिलाधिकारी सोनिका और आपदा प्रबन्धन अधिकारी दीपशिखा; तालियाँ हम कितनी ही पीट ले सम्भव यह सब इन्ही दोनों की मेहनत से हो पाया।
संता – मेहनत और श्रेय तो ठीक हैं, पर यह घटना जुड़ी तो उत्तरकाशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से ही थी ना?
बंता – हाँ, उनका प्रशिक्षण चल रहा था उस क्षेत्र में, जब 04 अक्टूबर 2022 को यह हिम-स्खलन हुवा था।
संता – लोग कितने थे भाई?
बंता – वैसे तो ज्यादा थे, पर हिम-स्खलन की चपेट में 29 आये थे और इनमे से 2 के शव अभी तक बरामद नही किये जा सके हैं।
संता – तो फिर?
बंता – अभी तक आधिकारिक तौर पर कहे तो, लापता है ये दोनो लोग।
संता – क्या ऐसा यहाँ पहली बार हो रहा हैं?
बंता – नहीं भाई, विशेष रूप से भूस्खलन व त्वरित बाढ़ की स्थिति में कई बार प्रभावितों के शव बरामद नही हो पाते हैं।
सच कहो तो इन घटनाओ में मलबा इतना ज्यादा और इतने बड़े इलाके में फैला होता हैं कि किसी को भी खोज पाना सम्भव नहीं हो पाता हैं।
फिर शवों को खोजने के लिये कही कोई उपकरण या विधि भी तो नहीं हैं।
संता – वैसे आपदा में लापता इन व्यक्तियों के परिजनों को राहत आदि तो दी जाती हैं ना?
बंता – भाई, सच कहूँ तो यह सब इतना भी आसान नहीं हैं।
बड़ा पेंच हैं इसमें।
संता – राहत में यह कैसा पेंच?
बंता – नियम जो हैं, वो कहता हैं की आपदा के कारण मरने वाले व्यक्ति के परिजनों को राहत दी जायेगी।
और इस नियम में आपदा में लापता हुवे व्यक्तियों का कहीं कोई उल्लेख नहीं हैं।
सो आपदा में लापता व्यक्तियों के परिजनों को नियमानुसार राहत अनुमन्य नहीं हैं।
कम से कम तब तक तो नहीं, जब तक कि लापता व्यक्तियों को औपचारिक रूप से मृत घोषित ना कर दिया जाये।
संता – फिर ऐसे में किया क्या जाता हैं?
बंता – आमतौर पर तो जनपद के स्तर पर मजिस्ट्रियल जाँच – जिसके अन्तर्गत घटना से जुड़े साक्ष्य जुटाये जाते हैं।
घटनास्थल पर उपस्थित लोगो के साथ-साथ राहत व बचाव में लगे लोगो के बयान लिये जाते हैं।
इन्ही सब के आधार पर पुष्ट किया जाता हैं कि सम्बन्धित व्यक्ति घटना के समय वहीं था,
घटना से प्रभावित हुवा था,
उसके जिन्दा बचने की कोई सम्भावना नहीं हैं,
और बहुत खोजने पर भी उसका शव बरामद नहीं हो पाया हैं।
इस सब के आधार पर घटना में लापता व्यक्ति को मृत मान लिया जाता हैं,
और कुछ अन्य औपचारिकताओं के बाद उसके परिजनों को नियमानुसार अनुमन्य राहत दे दी जाती हैं।
संता – समय तो इस सब में जरूर लगता होगा, पर आखिर में राहत राशि तो मिल ही जाती हैं ना?
बंता – राहत तो ठीक हैं भाई।
पर इतनी मगजमारी के बाद भी इन लापता व्यक्तियों का मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं बन पाता हैं।
संता – ये क्या बात हुयी?
जाँच कर ली, मरा हुवा भी मान ही लिया, और नियमानुसार अनुमन्य राहत भी दे दी।
तो फिर बच ही क्या जाता हैं?
मृत्यु प्रमाण पत्र का क्या लोचा हैं?
और इसके बिना तो लापता व्यक्ति के परिजन बस झूलते रहेंगे।
बंता – हाँ, मृत्यु प्रमाण पत्र के बिना तो किसी भी व्यक्ति को विधिक रूप से मरा हुवा नहीं माना जा सकता हैं।
सो ऐसे में लापता व्यक्ति से जुड़े सारे के सारे सरकारी काम अटक जाते हैं।
ना बीमा लाभ,
ना बैंक खाते या सम्पत्ति से जुड़ा कोई लेन-देन,
ना अनुकम्पा नौकरी,
और ना ही पेंशन या नौकरी से जुड़े अन्य काम।
संता – कहाँ तो आपदा ने घर का एक व्यक्ति छीन लिया, ऊपर से हमारे यह सब नियम-कानून?
बंता – सच में बुरा लगता हैं, पर किया भी क्या जा सकता हैं।
संता – बुरा लगना तो ठीक हैं, पर ऐसे में तो लापता लोगो के परिजनों को ना जाने कितनी कठिनाइयाँ उठानी पड़ती होंगी?
और उनकी इन सब परेशानियों का तो लेखा-जोखा भी नहीं होगा किसी के पास?
बंता – भाई सो तो हैं।
एक तो शव नहीं मिल पाया, अंतिम संस्कार नहीं हो पाया; ऊपर से यह सब बखेड़े।
सच कहो तो लापता व्यक्ति के परिजनों के लिये यह कोई छोटी-मोटी परेशानी नहीं हैं।
संता – भाई कहीं, कोई तो व्यवस्था जरूर होगी लापता लोगों को ले कर?
बंता – वैसे कहने को 1872 की साक्ष्य विधि की धारा 108 में लापता हो जाने के सात साल के बाद न्यायालय के माध्यम से लापता व्यक्ति को मरा हुवा घोषित करवाया जा सकता हैं।
पर आपदा की स्थितियाँ सामान्य तो होती नहीं हैं,
और ऐसे में आपदा प्रभावितो के परिजनों को सात साल तक इन्तजार की सलाह भी नहीं दी जा सकती हैं।
संता – पर क्या आपदा की विशेष परिस्थितियों को देखते हुवे राज्य सरकार कुछ नहीं कर सकती?
बंता – अब मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता हैं तो केवल भारत सरकार के जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 के हिसाब से, और उसमें लापता लोगो को ले कर कोई भी व्यवस्था नहीं हैं।
संता – तो फिर ऐसे में?
बंता – ऐसे में आपदा व उसमे लापता लोगो का हवाला देते हुवे राज्य सरकार के द्वारा भारत के रजिस्ट्रार जनरल से इन व्यक्तियों को मृत घोषित करने के लिये विशेष प्रक्रिया का निर्धारण करने का अनुरोध किया जाता हैं।
फिर उसके बाद सम्बन्धित आपदा में लापता व्यक्तियों के मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत करने के लिये प्रक्रिया निर्धारित की जाती है।
2013 की केदारनाथ आपदा के साथ ही 2021 की धौलीगंगा बाढ़ के बाद ऐसा किया भी गया था।
संता – पर इस सब में तो काफी समय लग जाता होगा?
बंता – सो तो हैं।
2013 की केदारनाथ आपदा हुयी थी 16 व 17 जून को, और रजिस्ट्रार जनरल के द्वारा प्रक्रिया निर्धारित की गयी 16 अगस्त को।
इसी तरह 7 फरवरी 2021 की धौलीगंगा बाढ़ के बाद इस प्रक्रिया का निर्धारण 21 फरवरी को किया गया था।
संता – सरकार द्वारा निर्धारित यह प्रक्रिया सीधी-सपाट तो होने से रही?
इसमें भी समय तो लगता ही होगा?
बंता – सो तो है, कई तरह की औपचारिकतायें जो पूरी करनी होती हैं।
पुलिस जाँच-पड़ताल के साथ-साथ सार्वजनिक सूचना – ताकि पुष्ट हो सके कि सम्बन्धित व्यक्ति जिन्दा नहीं हैं।
7 फरवरी 2021 की धौलीगंगा बाढ़ में 204 लोग मारे गये थे, जिसमें से 159 लापता थे।
रजिस्ट्रार जनरल के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार अभी तक 140 के ही मृत्यु प्रमाण पत्र बनाये जा सके हैं।
संता – भाई, तुम भी हर बात को बस घुमाते रहते हो।
सीधे-सीधे कहो ना कि घटना के लगभग 2 साल के बाद भी 19 लापता लोगो के परिजनों को मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं दिये गये हैं।
बंता – सो तो हैं।
पर इन 19 में से 9 नेपाली मूल के व्यक्ति हैं।
और बाकी बचे 10 व्यक्तियों के सम्बन्ध में अभी उनके गृह राज्य ने रजिस्ट्रार जनरल के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया पूरी नहीं की हैं।
संता – आज के इलेक्ट्रॉनिक संचार के युग में इतना समय।
वैसे सच कहूँ बंता भाई, मसला तो ये मानवाधिकार हनन का बनता हैं।
बंता – समस्या तो हैं, पर किया क्या जाये।
मृत्यु प्रमाण पत्र भी तो ऐसे ही नहीं दिया जा सकता।
हमारे यहाँ तो एकदम से उसका भी दुरुपयोग शुरू हो जायेगा।
संता – पर आपदा जैसे संवेदनशील विषय के लिये तो विशेष नियम-कानून बनाये ही जा सकते हैं।
फिर हर आपदा के बाद रजिस्ट्रार जनरल के चक्कर काटना भी तो ठीक नहीं हैं।
बंता – हाँ, मजिस्ट्रियल जाँच के लिये मानक व कड़े नियम बनाये जा सकते हैं,
और उस के आधार पर मृत्यु प्रमाण पत्र दिये जाने की व्यवस्था की जा सकती हैं।
सच मानो बंता भाई, कोशिश तो हम भी यही कर रहे हैं।
पर यहाँ अपनी सुनता कौन हैं?
संता – बंता भाई, नये साल से कुछ तो उम्मीद रखो।
समझो कि नये साल में, नयी सोच के साथ, कुछ नया और अच्छा होगा।
Umesh Kumar says
Really innovative way of putting forth issues and enlightening the readers. Keep it up.
गुमनाम सी जानकारी, रोचक तरीके से… निवेदन है वीडियो रील के माध्यम से भी लाएँ…. ज्यादा प्रभावी रहेगा…
I would suggest you catch hold of some visual artist and make a cartoon series of your write ups for mass awareness and knowledge sharing.
Wonderfully crafted. Happy new year to you both for being there even on the New Year eve.
Happy new year to Santa – Banta team as well.
Do continue with this great work.
You have so brilliantly explained the issues and consequences that there remains no scope of any question. But then, the ball is now in the court of NDMA and the authorities out there should take the matter forward and get it resolved – for early issuance of Death Certificate after a disaster is a serious issue and non-issuance of Death Certificate after two years is a serious issue. Heads need really to roll and if not we are not a society that respects and upholds human rights, be what we boast.